अंग्रेजी शासन की गुलामी के दो सौ साल बाद भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वाधीनता मिली। पहले स्वाधीनता दिवस पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन हुआ था। स्वतंत्रता -प्राप्ति के अवसर पर 15 अगस्त, 1947 को लाल किले में आयोजित स्वाधीनता दिवस समारोह में जब खाँ साहब को शहनाई बजाने का निमंत्रण मिला तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। लेकिन जब आयोजकों ने पैदल चलकर बजाने को कहा तो बिस्मिल्लाह खाँ ने साफ तौर पर मना कर दिया। काफी जद्दोजहद के बाद जब आयोजकों ने कहा, ‘‘खाँ साहब, आपके लिए खुशी की बात है कि सबसे आगे चलकर आप संपूर्ण भारतवर्ष का नेतृत्व करेंगे और आपके पीछे राष्ट्रपति (डॉ. राजेंद्र प्रसाद), प्रधानमंत्री (पं. जवाहरलाल नेहरू), सरदार पटेल आदि चलेंगे।’’ सारी बात सुनकर जनाब आखिर मान ही गए।
Bismilaah khan with Shamsuddin-1950 |
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नवाब पटौदी कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे। बिस्मिल्लाह खाँ खादी का कुरता-पाजामा, सिर पर खादी की ही टोपी, शहनाई बजाते हुए चल रहे थे। उनके आगे एकमात्र औरत सिर पर कलश लिये सगुन (शुभ) के लिए आगे-आगे चल रही थी। फिर क्या, दृश्य देखने लायक था, मानो सारे हिंदुस्तानी उनके पीछे चल रहे हों। उस वक्त का मनोहारी दृश्य देखते ही बनाता था। खाँ साहब अपने आपको काफी गौरवान्वित महसूस कर रहे थे।
हमारे देश में उत्सवों, पर्वों, वैवाहिक एवं शुभ मुहूर्तों पर अमीर-गरीब हर वर्ग के लोग शहनाई बजवाते हैं। भारत में वैवाहिक उत्सवों के दौरान लोक संगीत और लोकगीतों के माध्यम से भारतीय संगीत ने विश्व को लय व ताल दी है। नवाब पटौदी ने घोषणा की कि ‘‘आज बहुत ही खुशी की बात है, हम आजादी का कार्यक्रम कर रहे हैं और खुशी के इस मौके पर लाल किले के इस दीवान-ए-खास में हम चाहेंगे कि बिस्मिल्लाह खाँ साहब शहनाई बजाएँ।’’ उसके बाद शहनाई का सुर साधा खाँ साहब ने और खूब जमकर शहनाई बजाई।
Bismillah khan awards- photo twitter |
बनारस में शहनाई बजाने में जितना आनंद मिलता है उतना कहीं नहीं। वे कहते थे—‘‘जन्नत भी भरे पानी मेरे काशी के सामने।’’ बड़े गर्व की बात है कि एक छोटे से कस्बे डुमराँव राज से छोटा सा बच्चा पहुँचा और एक दिन भारत की स्वाधीनता के महापर्व में शहनाई जैसे सुरीले वाद्य से आजाद भारत को सिंचित किया।
स्रोत -शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खान द्वारा मुरली मनोहर श्रीवास्तव
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