" शिक्षा के अभाव मे ज्ञान का लोप हो जाता है, ज्ञान के अभाव मे विकास का लोप हो जाता है, विकास के अभाव मे धन का लोप हो जाता है और धन के अभाव मे शूद्रों का लोप हो जाता है।"
महत्मा ज्योतिबा फूले (1890)
डॉ अम्बेडकर(Dr. Ambedkar)-जीवन- राजनीतिक, आर्थिक विचार एवं दर्शन:-
भारतरत्न डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर, जिन्हे स्नेह से बाबासाहब भी कहा जाता है, 20वीं शदी के भारत के सर्वाधिक यशस्वी सपूतों में से एक हैं। वे भारत के सामाजिक राजनीतिक मंच पर 1920 के दशक के प्रारंभ में प्रकट हुए और ब्रिटिश राज से अंत तक भारत के वैचारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक कायाकल्प के लिये हमेशा तत्पर रहे। स्वतंत्रता के बाद से सन् 1956 में मृत्युपर्यंत आधुनिक भारत की नींव रखने में डॉ. आंबेडकर ने अपने महत्त्वपूर्ण से अनूठी भूमिका निभाई।जन्म, बाल्यकाल एवं शिक्षा:-
भीमराव अंबेडकर का जन्म मध्य भारत के एक छोटे से शहर मऊ में एक अछूत परिवार में 14 अप्रैल 1891 मे हुआ था। उनके परिवार का सैन्य सेवा से संबंध था। वे महार जाति के सदस्य थे। उनके पिता राम जी मऊ सैनिक स्कूल के प्रभारी सूबेदार-मेजर थे। उनकी माता का नाम भीमाबाई था। राम जी और उनकी पत्नी भीमाबाई की चौदह संताने हुईं। उनमे से सात की मृत्यु शैशवावस्था में ही हो गई। भीम अपने माता-पिता का 14वां बालक था जिन्हें प्यार से भीवा भी पुकारा जाता था।
1894 में उनका परिवार सातारा में बस गया जहां उनके पिता राम जी को लोक निर्माण विभाग में स्टोर कीपर के पद पर नियुक्त किया गया। वहीं से भीवा ने एक कैंप स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा शुरू की और 1900 मे अंग्रेजी माध्यम के एक सरकारी हाई स्कूल में पहली कक्षा में दाखिला पाया। इस स्कूल में उनका नाम भीवा रामजी अंबेडकर के नाम से दाखिल हुआ। उनके पिता चाहते थे कि उनका पुत्र ना केवल उत्तीर्ण हो बल्कि अच्छे अंको से उत्तीर्ण हो। भीवा शुरू में परीक्षा के प्रति लापरवाह थे परंतु 1904 में जब उनका परिवार मुंबई आ गया उनका रुझान अध्ययन की ओर गया।
विवाह, नौकरी और संघर्षपूर्ण जीवन:-
वर्ष 1905 में 14 वर्ष की अवस्था में भीवा का विवाह रमाबाई से हुआ। उस वक्त रमाबाई की उम्र केवल 9 साल की थी। सन 1912 में उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम यशवंत रखा गया। 1913 से 1924 के बीच उनकी चार और संताने हुई परंतु केवल यशवंत ही जीवित रह सका। 1907 में उन्होंने हाईस्कूल तथा 1913 में अंग्रेजी तथा फारसी में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की। जुलाई 1913 में बड़ौदा के महाराज से छात्रवृत्ति पाकर वह न्यूयार्क स्थिति कोलंबिया विश्वविद्यालय में अध्ययन हेतु चले गए। यहां का माहौल उनके लिए बहुत खुला था क्योंकि अमेरिकियों और वहां रहने वाले भारतीयों के लिए छुआछूत का कोई मतलब नहीं था।1916 में कोलंबिया में डिग्री की पढ़ाई समाप्त होने पर अंबेडकर ने लंदन जाने का निश्चय किया। वह बैरिस्टर बनना चाहते थे। परंतु 1 साल बाद छात्रवृत्ति की अवधि समाप्त हो जाने के कारण अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर उन्हें भारत वापस आना पड़ा। छात्रवृत्ति की एवज में अंबेडकर ने बड़ौदा राज्य की एक निश्चित अवधि तक सेवा करने का अनुबंध किया था। उन्होंने बड़ौदा राज्य में सेवा करनी शुरू कर दी। पर यहां उनके साथ उनकी जाति को लेकर बुरा बर्ताव किया जाता था। उन्हे बड़ौदा शासक का मिलिट्री सेक्रेटरी नियुक्त किया गया था परंतु काम का अस्पष्ट बटवारा नहीं किया गया था। वह वहां एक पारसी मकान मालिक के यहां रहते थे परंतु जब उनके मकान मालिक को उनकी जाति का पता चला तो उसने उन्हें अपने घर से निकाल दिया। लोगों ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी। अन्तत: 17 नवंबर 1917 को उन्होंने राज्य छोड़ दिया।
वकालत और अछूतों के लिये संघर्ष:-
बाद में उन्हे मुंबई के सिन्देहम कॉलेज में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में 2 वर्षों के लिए नियुक्त मिली। यहां 2 वर्षों तक अपनी कमाई से ₹7000 बचाकर और कोल्हापुर के महाराज से प्राप्त 1500 रुपए की उपहार राशि की मदद से वे पुनः लंदन रवाना हो गए ताकि अपनी डॉक्टरेट की डिग्री की सारी औपचारिकताओं को पूरा कर सकें। इसी दौरान युवा अंबेडकर को दो नये अनुभव हुये- एक भावनात्मक व व्यक्तिगत तथा का दूसरा राष्ट्रवादी व राजनीतिक था। लंदन में मकान मालकिन की पुत्री फैनी फित्जेराल्ड से उनकी अंतरंगता बढ़ी। वह इंडिया ऑफिस में कार्यरत थी और शायद उन्हें कुछ आर्थिक मदद भी करती थी। फैनी के प्रति अंबेडकर के भाव कहीं परिलक्षित नहीं हुए हैं लेकिन यह स्पष्ट है कि फैनी उनसे प्यार करती थी। एक भारतीय समाचार पत्र ने तो 1935 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसके अनुसार अंबेडकर ने लंदन प्रवास के दौरान एक अंग्रेज विधवा से शादी कर ली थी। परंतु बाद में अंबेडकर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके जीवन में महिलाओं की कोई भूमिका नहीं।लंदन में वह अब भारतीय विद्यार्थी आंदोलन में हिस्सा लेने लगे जिसने बाद में राजनीतिक आंदोलन का रूप ले लिया। अंबेडकर के लेख " रिस्पांसिबिलिटीज ऑफ रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट इन इंडिया" ने तो वहां पर काफी तीखा विवाद शुरू कर दिया। बाद में प्रोफेसर हेरल्ड लास्की के हस्तक्षेप के बाद यह विवाद थमा। उसी के बाद विद्यार्थियों के बीच भीमराव की छवि क्रांतिकारी विचारक की बन गई। उनका डॉक्टरेट का शोध प्रबंध भी विवाद के घेरे में आ गया। जून 1921 में उनका एम.एस.सी. का शोध प्रबंध स्वीकार कर लिया गया। उसके बाद उन्होंने " द प्रॉब्लम ऑफ दि रूपी" विषय पर डॉक्टरेट की डिग्री के लिए अपना शोध प्रबंध प्रस्तुत किया। परंतु राजनीतिक कारणों से यह अस्वीकृत कर दिया गया।वह मुंबई लौट गए और बाद में 1923 में उन्होंने अपना संशोधित शोध प्रबंध भेजा जिसे स्वीकार कर उन्हे डिग्री प्रदान की गई।
भारत लौटने के बाद उन्होंने अपनी गृहस्थी की समस्या संभाली । 1924 में मुंबई हाईकोर्ट में अपना पंजीकरण कराया। भारत आने के बाद उनको छुआछूत और सामाजिक दुराव की भीषण समस्या का सामना करना पड़ा। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी। अत: यहीं पर एक विद्यालय में उन्होंने शिक्षण का कार्य शुरू किया और नीचीजाति के उद्धार के लिए अपना संघर्ष जारी रखा।
योगदान:--
आर्थिक विषयों पर अंबेडकर के लेख बहुत ही विचारोत्तेजक थे। उन्होंने बताया कि खुली अर्थव्यवस्था में भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकता है। उनकी पुस्तक " द इवोल्यूशन ऑफ प्रोविंशियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया" में उन्होंने बताया है कि ब्रिटिश राजकोषीय नीति के तहत भारत में किस प्रकार अविवेक पूर्ण कर लगाए गए हैं। उन्होंने आगे भी कहा कि ब्रिटिश सरकार ने भारतीय समाज में विद्यमान प्रवृत्तियों, यहां के लोगों की आकांक्षाओं, जरूरतों एवं इच्छाओं के प्रति कोई सहानुभूति नहीं रखी बल्कि उनका व्यवहार इसके बिल्कुल विपरीत था।
डॉ. आंबेडकर का जीवन एक अविश्वसनीय आख्यान है । यह एक अस्पृश्य बालक की कहानी है जो बचपन से जवानी तक कदम-कदम पर अपमानित, सभी विवशताओं को पार करते हुए वैश्विक स्तर के विश्वविद्यालयों से उच्चतम डिग्रियाँ प्राप्त करता है। इसके बाद वे अपना जीवन अन्यायपूर्ण एवं मानव अधिकारों से वंचित जातिबद्ध पुरानी सामाजिक व्यवस्था के विनाश हेतु समर्पित कर देते हैं। बिना किसी राजनीतिक वंशावली के ही उन्होने अपनी मरतोड़ मेहनत, दृढ़निश्चय, उच्चतम साहस एवं स्वार्थरहित बलिदान के बल पर, जबरदस्त राजनीतिक विरोध तथा सामाजिक भेदभाव पर विजय पाते हुए वे स्वतंत्र भारत के संविधान के प्रधान निर्माता बन जाते हैं।
तदुपरांत वे इस सकारात्मक कार्य के उद्देश्य से एक अधिक न्याययुक्त समाज, जो लाखों-करोड़ों पददलित लोगों को सामाजिक न्याय दे सके, उसकी स्थापना के कार्य में प्रयासरत हो जाते हैं। और इस प्रकार सामाजिक न्याय एवं तार्किकता पर आधारित एक नए भारत के निर्माण की बुनियाद रखते हैं।
हमारे देश के इतिहास शायद ही किसी नेता की इतनी अधिक मूर्तियाँ लगी हो जितनी कि डॉ. आंबेडकर की ही लगी हैं। इन मूर्तियों में वे एक हट्टे-कट्टे, नीले सूट और लाल टाई पहने हाथ में पुस्तक लिये हुए, जो निश्चित ही भारतीय संविधान है, दिखाए जाते हैं। ऐसी मूर्तियाँ सारे देश में—गाँवों में, शहरों में और अकसर चौराहों पर देखी जाती है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि प्रत्येक वर्ष 6 दिसंबर (डॉ. आंबेडकर की निर्वाण तिथि 6 दिसम्बर 1956) को लगभग 20 लाख लोग मुंबई की चैत्य भूमि पर अपने नायक, जिसको वे अपने रक्षक के रूप में पूजते हैं, उनको श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्रित होते हैं। और यह भी आश्चर्य की बात नहीं है कि अगस्त 2012 में कुछ टी.वी. चैनलों द्वारा कराए गए ई-मतदान में उन्हें (महात्मा गांधी के बाद) सर्वश्रेष्ठ भारतीय चुना गया...........................!
क्रमश: जारी..............
स्रोत- अम्बेडकर प्रबुद्ध भारत की ओर- गेल ओमवेट,
डॉ अम्बेडकर सम्पूर्ण वांगमय,
डॉ अम्बेडकर- नरेंद्र जाधव।
22 comments
Click here for commentsअतीव सुन्दर लेख, देश उनके अविस्मरणीय योगदान के लिए ऋणी हमेशा रहेगा, परंतु आज के परिदृश्य में देश के नेता उनके नाम पर राजनीतिक स्वांग करने की कोशिश कर रहे हैं...
Replyजिन सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक बंधनो की जड़ो को डा.अम्बेडकर ने समाज से बहिष्कृत,ऐसा करना ही अपने आप में समाज का पूर्णर्निमाण हैं, पर दुर्भाग्य समाज का की इसमें उसका बीज अभी विद्वमान है ।
Replyजिन सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक बंधनो की जड़ो को डा.अम्बेडकर ने समाज से बहिष्कृत,ऐसा करना ही अपने आप में समाज का पूर्णर्निमाण हैं, पर दुर्भाग्य समाज का की इसमें उसका बीज अभी विद्वमान है ।
Replyजी बहुत बहुत आभार। अगली कड़ी में मै इस महापुरूष के आर्थिक, सामाजिक चिंतन पर लिखूगां। वैसे इस महान विभूति को राजनीतिक स्वांगो से परे हम भारतीयों को देखना चाहिये।
Replyजी शुक्रिया। वक्त की मांग है कि हमारे सामने उनके विचारों को तुक्ष्य राजनीति से परे जाकर लाया जाय ताकि हम एक शसक्त समाज का न्रेमाण कर सकें।
Replyधन्यवाद मित्र।
ReplyGreat!! Got to know a lot about him. Waiting for the next article on him.
Replyअतीव सुंदर लेख। अगले अंक का इंतजार है और यह उम्मीद है कि आर्थिक सामाजिक राजनीतिक चिंतन के क्रम में वर्तमान में उनकी प्रासंगिकता तथा उनके नाम का प्रयोग करने वाले ठेकेदारों (जो उनके नाम की रोटी खा रहे है) के विषय में भी लिखेंगे।
Replyजी मित्र बिल्कुल यही प्रयास रहेगा की उनके आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक चिंतन को प्रस्तुच कर सकूं।
ReplyThanks alot .. Will post new one very soon .
ReplyThanks for sharing such a knowledgble things....
Replyअति सुन्दर रचना के लिए बधाई। आशा है कि आप ऐसे ही महत्वपूर्ण जानकारी आगे भी जारी रखेंगे
ReplyGood knowledgeable details about Dr.B.R.Ambedker ji...waiting for more information about modern politics...
Replyजी बहुत बहुत आभार सर। प्रयास यही रहेगा कि आप सबको अच्छी से अच्छी जानकारी दी जाये।
Replyकाफी नया जानने को मिला बाबासाहेब के विषय में... बहुत मेहनत और कुशलता से पिरोया गया हर वाक्य रोचक और आकर्षक.. आपकी प्रवाहमय भाषा शैली के लिए भी साधुवाद...👍
ReplyThanks.soon will post a new blog. Keep visiting my blog nd subscribe.. So you can find more information about Dr ambedkar and other personalities
Replyबहुत बहुत शुक्रिया ।। ऐसे ही उत्साहवर्धन करते रहें।
Replyबहुत सुन्दर अनूप भाई, आपके ब्लॉग के द्वारा बाबा साहब के बारे मे काफी रोचक जानकारी मिली |
Replyआप अपने लेखन के द्वारा इसी तरह हमारे ज्ञान को बढ़ाते रहिये
बहुत सुन्दर अनूप भाई, आपके ब्लॉग के द्वारा बाबा साहब के बारे मे काफी रोचक जानकारी मिली |
Replyआप अपने लेखन के द्वारा इसी तरह हमारे ज्ञान को बढ़ाते रहिये
बहुत बहुत शुक्रिया भैया। बाबा साहब के सामाजिक विचार अगले ब्लॉग में जल्द कुछ और जानकारियों के साथ आप के लिये लेके आउूंगा। उत्साह वर्धन के लिये आपका साधुबाद भैया।🙏
ReplyMost welcome freind. Pls keep visiting my blog or subscribe.soon will come with a new and more informative post
ReplyThanks bhai,,
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