"हमें गोली से उड़ाया जाए"
आज़ादी के नायक शहीदे आज़म भगत सिंह के विचार आज भी युवा पीढ़ी को जोश से भर देते है। मात्र 23 साल की उम्र में देश, दुनिया, समाज और प्रशासन के विषय मे उन्होंने जो लिखा उसे हमारी युवा पीढ़ी को जरूर पढ़ना चाहिए। आज के समय मे जब हर मुद्दे को राष्ट्रवाद और देश भक्ति की चासनी में लपेट के परोसा जा रहा हो ऐसे में भगत सिंह के विचार और भी प्रासंगिक हो जाते है। आज हम उनके एक पत्र को यहां प्रस्तुत कर रहें है जिसे उन्होंने अपने साथी सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर पंजाब के गवर्नर को भेजा था और जिसमे अर्ज किया था कि उन तीनों को फांसी की बजाय गोली से उड़ाया जाय।
भगत सिंह (फ़ोटो-ट्वीटर) |
प्रति
20 मार्च, 1931
गवर्नर पंजाब, शिमला
महोदय,
उचित सम्मान के साथ हम नीचे लिखी बातें आपकी सेवा में दे रहे हैं। भारत की ब्रिटिश सरकार के सर्वोच्च अधिकारी वाइसराय ने एक विशेष अध्यादेश जारी करके लाहौर षड्यंत्अभियोग की सुनवाई के लिए एक विशेष न्यायाधिकरण ट्रिब्यूनल स्थापित किया था, जिसने अक्तूबर 1930 को हमें फाँसी का दंड सुनाया। हमारे विरुद्ध सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया है कि हमने सम्राट जार्ज पंचम के विरुद्ध युद्ध किया है। न्यायालय के निर्णय से दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं। पहली यह कि अंग्रेज जाति और भारतीय जनता के मध्य एक युद्ध चल रहा है। दूसरे यह कि हमने निश्चित रूप से इस युद्ध में भाग लिया है। अत: हम युद्धबंदी हैं।
भगतसिंह के अनमोल विचार |
हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी, जब तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की साँस के साधनों पर अपना एकाधिकार कर रखा है। निश्चित ही यह युद्ध उस समय तक समाप्त नहीं होगा, जब तक कि समाज का वर्तमान ढाँचा समाप्त नहीं हो जाता। प्रत्येक वस्तु में परिवर्तन या क्रांति समाप्त नहीं हो जाती और मानवीय सृष्टि में एक नवीन युग का सूत्रपात नहीं हो जाता है।
हम आपसे केवल यह प्रार्थना करना चाहते हैं कि आपकी सरकार के ही न्यायालय के निर्णय के अनुसार हमारे विरुद्ध युद्ध जारी रखने का अभियान है। इस दृष्टि से हम युद्धबंदी हैं। अत: इस आधार पर हम आपसे माँग करते हैं कि हमारे प्रति युद्धबंदियों जैसा ही व्यवहार किया जाए और हमें फाँसी देने के बदले गोली से उड़ा दिया जाए।
भवदीय
भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु।
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