डॉ अम्बेडकर (Dr. Ambedkar)- महिलाओ(Women), युवाओं, मजदूरों और शिक्षा (Education) पर विचार(Thoughts) और कार्य !


"जो तर्क नहीं करेगा, वह धर्मांध है। जो तर्क नहीं कर सकता, वह मूर्ख है। जिसमें तर्क करने का साहस नहीं है, वह दास है। "   विलियम ड्रमांड

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डॉ अम्बेडकर (Dr. Ambedkar)


डॉ अम्बेडकर (Dr. Ambedkar): महिलाओ, युवाओं, मजदूरों और शिक्षा पर विचार और कार्य :--

डॉ भीमराव अम्बेडकर ना केवल एक राजनेता थे अपितु वह ये प्रभावशाली जननायक होने के साथ साथ एक गंभीर चिंतक एवं विद्वान् भी थे। उनका पूरा राजनीतिक जीवन अछूतों, गैर-ब्राह्मणों और समाज के अन्य ऐसे वर्गों जैसे कि महिला, मजदूर के लिए समर्पित रहा है। उनका मानना था कि अंग्रेजों से जो हमें आजादी मिलेगी वह असल मायनों में केवल राजनीतिक रूप से सत्ता का स्थानांतरण होगा और इससे समाज के पददलित वर्गों , मजदूरों एवं महिलाओं  के जीवन में कोई सुधार नहीं होने वाला है। ऐसी आजादी का उनके लिए कोई महत्व नहीं रह जाता। वह निरंतर एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे जिसमें आपसी प्रेम, समानता, स्वतंत्रता और सबको बराबरी का अधिकार प्राप्त हो।

क्या अंबेडकर केवल एक दलित नेता थे ?


डॉ  आंबेडकर को मात्र दलित नेता कहना, उनकी विद्वत्ता, जन-आंदोलनों, सरकार में उनकी भूमिका के साथ न्याय नहीं होगा। युगों पुरानी जाति आधारित अन्यायपूर्ण और भेदभावकारी समाज में सामाजिक समानता और सांस्कृतिक एकता के जरिए लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का उनका व्यापक दृष्टिकोण जगजाहिर है। इन मुद्दों को लेकर वह ना केवल किसी एक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे अपितु वह सारी मानवता के मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ रहे थे। मानवाधिकारों के राष्ट्रवादी और साहसी नेता के रूप में उनके भाषणों में आधुनिक भारत की सामाजिक चेतना को जगाने के लिए उनके जीवन-पर्यंत समर्पण की झलक मिलती है।

इस पृष्ठभूमि में उन्हें केवल दलितों के नेता के रूप में पहचाना जाना, महिलाओं, कामगारों, शोसितों और मानवता के लिए किए गए उनके कार्यों और उनकी प्रतिभा के प्रति अन्याय होगा। भारत में अकसर कुछ जिम्मेदार लोगों के द्वारा भी उन्हे केवल दलितों के नेता के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जो कि गलत है। डॉ. आंबेडकर सिर्फ एक दलित नेता या भारत के शोषित लोगों के ही नेता नहीं थे। वे एक राष्ट्रीय नेता थे। उनकी विद्वत्ता, उनका जन आंदोलन, सरकार और उसके बाहर उनकी भूमिका दिखाती है कि उनका राष्ट्रवाद की अवधारणा उन लोगों से बिलकुल अलग थी जो ब्रिटिश शासन को भारत से बाहर खदेड़ने ले लिये भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे थे।

आखिर क्या था डॉ अंबेडकर  का राष्ट्रवाद ?

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डॉ अंबेडकर- (photo-wikipedia)


डॉ. अंबेडकर का राष्ट्रवाद केवल भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण तक सीमित नहीं था। उनकी दृष्टि में राष्ट्रवाद एक स्थायी प्रकृति मे भारत के राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का कार्य था। यह राष्ट्रीय पुनर्निर्माण सामाजिक समानता, बन्धुता और सांस्कृतिक एकता के जरिए युगों पुरानी जातिग्रस्त, अन्यायपूर्ण, भेदभाव युक्त सामाजिक व्यवस्था को छोड़कर एक लोकतांत्रिक गणराज्य का निर्माण करना था जिसमे सभी को समानता, सहस्तित्व , सम्मान और समान अधिकार प्राप्त हों।

1915 में दक्षिण अफ्रीका से गांधीजी के लौटने के बाद भारतीय राजनीति में उनके शामिल होने से राष्ट्रीय आंदोलन को एक नया नेतृत्व प्राप्त हुआ। साथ ही साथ उस वक्त की वैश्विक घटनाओं से कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ साथ क्रांतिकारी और अन्य संगठनों को भी नया जोश मिला। मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों के लागू हो जाने के बाद तो पूरे देश में राष्ट्र वादियों के साथ-साथ दलित एवं गैर ब्राह्मणों, महिलाओं एवं मजदूरों में भी राजनीतिक अधिकार पाने की इच्छा बलवती होती गयी।

आंबेडकर द्वारा अछूतो और श्रमिकों के लिए किये गए प्रयास -


डॉ. आंबेडकर प्रारंभ से ही अछूतों के लिए समान राजनीतिक अधिकारों के लिए दृढ़प्रतिज्ञ थे। अपने शुरुआती भाषणों में से एक में उन्होंने कहा, ‘‘अगर स्वराज आ रहा है तो हमें इसमें अवश्य ही समान राजनीतिक अधिकार मिलना चाहिए।’’ और आगे भी एक स्थान पर इसी तरह से नागपुर मे अपने समर्थकों से अपील करते हुये कहते है कि  ‘‘वे उन लोगों की निंदा करें, जो तरक्की का विरोध करते हैं और अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए हमें अवश्य ही आक्रामक रवैया अख्तियार करना चाहिए।’’ (बेलगाम, 23 मार्च, 1929)।

डॉ. अंबेडकर ने अस्पृश्यता  के साथ साथ ही श्रमिकों के कल्याण के लिए प्रयास करते हुए श्रमिक संघ के विकास के लिए भी काफी कार्य किया। और अपने इन्हीं प्रयासों के कारण 1930 के दशक तक वे भारत के एक प्रमुख श्रमिक नेता के रूप में जाने लगे। सन् 1934 में  उन्होंने  ‘बॉम्बे म्यूनिसिपल वर्क्स यूनियन’ के अध्यक्ष के तौर पर इस क्षेत्र में अनेक गतिविधियाँ शुरू कीं और बाद में सन् 1936 में "इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी" नामक एक राजनीतिक दल गठन भी किया । मजदूरों और श्रमिकों को को गुमराह करने के लिए वह अक्सर कम्युनिस्टों की कड़ी आलोचना भी करते थे । अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा कि —‘‘श्रमिक संघों को अपने हितों की रक्षा के लिए राजनीति में अवश्य ही प्रवेश करना चाहिए।’’ मार्च 1939 में मुंबई में भाषण देते हुए उन्होंने कहा था कि ‘‘पूर्ण स्वतंत्रता का अर्थ है साम्राज्यवाद, पूँजीवाद और मध्यवर्गीय भारतीय व्यापारियों के शिकंजे से देश की मुक्ति।’’

युवाओं और शिक्षा पर क्या थे आंबेडकर के विचार ?

dr ambedkar chairman of drafting committee
(Dr Ambedkar as Chairman of_the People's Education Society Mumbai )


डॉ अंबेडकर के शिक्षा और युवाओं पर व्यक्त विचार भी आज के वक़्त के लिये अत्यंत प्रासंगिक है। उनके अनुसार, ‘‘केवल डिग्री हासिल करने से कुछ हासिल नहीं होगा। शिक्षा को चाय के दौर का मजा नहीं मान लेना चाहिए।’’ उनके अनुसार युवाओ को शिक्षा को अपने विचारों और वार्तालपो से आगे ले जाकर एक समानता और सम्मान युक्त स्थायी समाज का निर्माण करना चाहिये। शिक्षा की महत्ता पर उन्होंने युवाओं से कहा, ‘‘बिना चरित्र और विनम्रता के एक शिक्षित व्यक्ति वहशी से कहीं ज्यादा खतरनाक है। ऐसे शिक्षित लोग जो गरीबों के कल्याण के विरोधी हैं, वे समाज के लिए अभिशाप हैं।’’

 डॉ.अंबेडकर ने देश के युवाओं और छात्र समुदाय को संबोधित करते हुए अनेक भाषण दिए। उन्होंने छात्रों को प्रतियोगी, परिश्रमसाध्य और उत्कृष्टता हासिल हेतु व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाने को कहा, ‘‘उच्च वर्ग के लोगों से बौद्धिक स्तर पर प्रतियोगिता किए बिना आपकी शिक्षा अनुपयोगी रह जाएगी।’’  युवाओं को सम्बोधित अपने वक्तब्यों मे वह युवाओं को यह बताते हैं कि शिक्षा एक दो-धारी हथियार की तरह है। यदि यह अविवेकवान व्यक्ति के हाथ लग जाए, जिसका कोई चरित्र न हो तो यह समाज के लिए विनाशकारी हो जाएगी। लेकिन यदि शिक्षा किसी चरित्रवान, सहृदय व विनम्र व्यक्ति के हाथ लगे तो वह सामाजिक क्रांति पैदा कर देगा। इसीलिए उन्होंने हमेशा युवाओं से अपने अन्दर अच्छी आदतें विकसित करने और अच्छा जीवन जीने की अपील की।

महिला शिक्षा और महिला शसक्तीकरण पर विचार :-


डॉ अंबेडकर ने अछूतों के उत्थान के साथ-साथ तात्कालीन समाज में महिलाओं की भूमिका पर चिंता करते करते हैं। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा पर अत्यंत जोर दिया और महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि ‘‘यदि आप अपनी अगली पीढ़ी सुधारना चाहती हैं, तो आपको अपनी लड़कियों को भी शिक्षित करना होगा।’’ उन्होंने  महिलाओं से तत्कालीन समाज में व्याप्त नृशंस रीति-रिवाजों और परंपराओं को त्यागने को कहा। उनको इस बात का दृढ़ यकीन था कि महिलाओं की तरक्की ही प्रगतिशील समाज की पहचान है। उन्होंने जन्म नियंत्रण और महिलाओं की समानता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘‘याद रखो, बहुत ज्यादा बच्चे पैदा करना एक अपराध है। अपने पति की मित्र के दरजे में रहें, न कि उसकी गुलाम बनकर।’’

क्रमश: जारी........
स्रोत:- अम्बेडकर प्रबुद्ध भारत की ओर- गेल ओमवेट,
डॉ अंबेडकर सम्पूर्ण वांगमय,
डॉ. अंबेडकर: सम्पादक- नरेन्द्र जाधव। 
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26 comments

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Unknown
admin
April 17, 2020 at 10:01 PM ×

अम्बेडकर अपने समय से आगे के नेता थे जैसा की भारत के राजनैतिक स्वर्ण काल के अन्य नेता थे पर जब कभी भी बात विचारों को विधिवत करने की हुई अम्बेडकर निर्विवाद रूप से सबसे आगे हैं.... लेखक को प्रस्तुत लेख में समस्त विषयों को समेटने के लिए साधुवाद...💐💐💐

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April 18, 2020 at 1:40 AM ×

अम्बेडकर व्यक्ति मात्र नहीं बल्कि अपने आप में एक समग्र विचार थे जो की संपूर्ण राष्ट्र एवं मानवता के कल्याण के पक्षधर थे। लेखन ने अपने लेख में अम्बेडकर के विशद व्यक्तित्व को समाहित कर गागर में सागर की उक्ति को चरितार्थ किया है।लेखक को निरंतर लेखन जारी रखने हेतु शुभकामनाएं।

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April 18, 2020 at 1:44 AM ×

अम्बेडकर जैसे समग्रतावादी व्यक्तित्व को गागर में सागर की भांति अल्प शब्दों में प्रभावपूर्ण लेखन के लिए लेखक को धन्यवाद तथा ऐसे ही महत्वपूर्ण विषयों पर अग्रिम लेकिन हेतु शुभकामनाएं।

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April 18, 2020 at 2:05 AM ×

बहुत बहुत आभार भाई। उत्साह वर्धन के लिये। कृपया ऐसे ही सुझाव और टिप्पड़ी देते रहें।

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April 18, 2020 at 2:06 AM ×

बहुत बहुत आभारा भैया जी। ऐसे ही अपनी बहुमूल्य टिप्पणी और सुझावों से हमारा मार्गदर्शन करते रहें।

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April 18, 2020 at 2:07 AM ×

जी भैया जी। ऐसे ही मुद्दों और व्यक्तित्वौं पर लेखन जारी रहेगा। आपका आशीर्वाद म्लता रहें बस।

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Unknown
admin
April 18, 2020 at 1:31 PM ×

सुन्दर लेखन, और तारीफ में बस इतना कहूंगा कि अगली कड़ी का इंतजार है...

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Unknown
admin
April 18, 2020 at 2:13 PM ×

Achhi bat ye thi ki inhone kisi ek varg ke liye nhi apitu samaj ke har ek varg ke bare mai socha jo pidit the.
Sath hi sath samaj me Mahilao ke astitva ko bhi bakhubi samjhaya.

Inke vicharo ko bhot hi achhe tarah se shabdo me piroya hai aapne..

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April 18, 2020 at 2:48 PM ×

जी शुक्रिया। जल्द ही अगली कड़ी आयेगी।

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April 18, 2020 at 2:49 PM ×

बहुत बहुत शुक्रिया मित्र। ऐसे ही उत्साह वर्धन करतें रहें।

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April 18, 2020 at 7:07 PM ×

आप महान थे।इनको समझने के लिए विचार,दृष्टीकोण में परिवर्तन आवश्यक है?

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April 18, 2020 at 8:10 PM ×

Your efforts are really visible in the article A.J.

Waiting for the next one.

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April 18, 2020 at 8:50 PM ×

जी विल्कुल सही कहा आपनें।

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Pooja Akshay
admin
April 18, 2020 at 11:44 PM ×

Really very good.. Keep writing.. ��

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Pooja Akshay
admin
April 18, 2020 at 11:45 PM ×

Really very good.. Keep writing.. :)

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April 19, 2020 at 12:26 AM ×

अति सुंदर लेख, आप से हमरा निवेदन है कि कश्मीर सहित भारत पाकिस्तान के बटवारे पर इनके के विचारो पर प्रकाश डाले तो बहुत अच्छा होगा, क्योंकि इस पर कई भ्रांतियां है, तो ज्यादा अस्पष्टता होगा!

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April 19, 2020 at 1:38 AM ×

जल्द ही अगली कड़ी में। विभाजन पर उनके विचारों को रखूगां। बस आप सू ऐसे ही उत्साहवर्धन करते रहें। और मुझे फालो और सब्सक्राइब करें।

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April 21, 2020 at 10:47 AM ×

वाह भैया बहुत सुंदर पहली बार अम्बेडकर को इतने धैर्य से पूरा पढा इसको आगे और भी बढाइये ..

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April 21, 2020 at 10:47 AM ×

वाह भैया बहुत सुंदर पहली बार अम्बेडकर को इतने धैर्य से पूरा पढा इसको आगे और भी बढाइये ..

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April 21, 2020 at 10:49 AM ×

वाह भैया बहुत सुंदर इस सीरीज को आगे भी बढाइये

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Unknown
admin
April 21, 2020 at 4:56 PM ×

बहुत सुंदर लेख मित्र। अध्ययन का समाहार स्पष्टतः प्रस्तुत हो रहा है। जारी रखें इसे।

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