आज से कोई साढ़े तीन अरब साल पहले की बात है तब पृथ्वी पर केवल एक कोशिका वाले जीव ही पनपते थे। ये अपना भोजन खुद पैदा भी नहीं कर पाते थे। परन्तु इसके काफी समय बीत जाने के बाद पृथ्वी पर जीवों की जीवन लीला में एक नई क्रांति आई, जिसके नायक थे सायनोबैक्टीरिया। साइनोबैक्टीरिया की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि ये सूरज के प्रकाश और हवा में घुलित कार्बन के गैसीय रूप से अपना भोजन अपनी रसोई में खुद बनाना सीख गए। और यहां से पृथ्वी पर धीरे-धीरे जीवो के विकास का क्रम शुरू हुआ ।
पृथ्वी के इतिहास इतिहास की तुलना में मनुष्य को धरती पर आये अभी कुछ ज्यादा दिन नहीं हुए है। मनुष्य का पहला विकास अगर देखा जाए तो लगभग 25 लाख साल पहले पूर्वी अफ्रीका में वानरो के एक आरंभिक जीन्स ऑस्ट्रेलोपीथिकस से हुआ। और अगर आधुनिक मानव की बात करें तो उसका कोई भी अवशेष 2 से 3 लाख साल से पुराना नहीं मिलता। जबकि पत्थरों की आयु को नापकर धरती की आयु कोई 4.50 अरब साल आंकी गई है और इस प्रकार अगर देखे तो पृथ्वी के इतिहास में मानव को आए अभी जुम्मा जुम्मा कुछ ही दिन हुए हैं। यदि पृथ्वी के इतिहास को एक कैलेंडर में परिवर्तित कर दिया जाए तो मनुष्य प्रजाति का पदार्पण उसने 31 दिसंबर की रात को कोई 11:30 बजे के बाद हुआ।
मानव को आगे बढ़ने और उसकी सामाजिक और जैविक प्रगति को गति देनें में सीढ़ी का काम किया आग की खोज नें। इस क्रम में मानव ने आग को अपना हथियार बनाने के साथ साथ उसका फिर घरेलू जीवन में प्रयोग करना शुरू किया। जैसे ही मनुष्यों ने आग को घरेलू बनाया तो उन्होने एक आग्यानुवर्ती और संभाव्य रूप से असीम बल पर काबू पा लिया। अन्य जीवों से भिन्न मनुष्य यह तय कर सकते थे कि उन्हे कब और कहां, किस स्थिति मे आग की एक लपट पैदा करनी है। अब मानव कई कामों के लिये आग का प्रयोग कर सकते थे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि आग की शक्ति मानव शरीर की के रूप , संरचना या सामर्थ्य से सीमित नहीं थी।
पिछले 25 लाख सालों तक मानव उन वनस्पतियों को बटोरने में और पशुओं का शिकार करने में लगा रहा जिनसे वह अपना उधर पोषण करता था। पर इन वनस्पतियों और जीवों के जीवन में मानव का कोई भी हस्तक्षेप नहीं था। ये वनस्पपतियां और जीव अपने हिसाब से प्ररकृति के संसर्ग में विकसित होते और मानव जरूरत पड़ने पर उनका संग्रह करता। परन्तु लगभग 10 हजार साल पहले यह सब कुछ बदल गया और मानव ने कुछ जीव और वनस्पति प्रजातियों के जीवन को नियंत्रित करना आरंभ कर दिया। वह सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक खेतों में काम करने और पशुओं को पालने के द्वारा उनके जीवन में हस्तक्षेप करना शुरू किया। यह कृषि क्रांति थी और कृषि क्रांति के विकास की दिशा में मानव जाति द्वारा एक बहुत बड़ी छलांग थी। विकास की इस प्रक्रिया में मनुष्य धीरे-धीरे और अक्लमंद होता चला गया और उसकी आने वाली नई पीढ़िया निरंतर चतुर होती गई। ये मानव द्वारा प्रजातियों के जीवन में हस्तक्षेप के रहस्य को समझने में और सक्षम होती गयीं।
वक्त के साथ मानव विकास की गति ने भी अपनी गति और तीव्र की। इंसान अब आदिमानव से, कृषि करने वाला मानव और धीरे-धीरे वहां से सभ्य, सुगठित समाज मे रहने वाला मनुष्य बन बैठा। परन्तु उस वक़्त तक वह मात्र एक संग्रह कर्ता तक ही था । मानव एवं उसका समाज अपनी सारी जरूरतों की पूर्ति स्वयं द्वारा निर्मित उत्पादों या संग्रह की गयी वस्तुओं के उपभोग से करता था। भोजन, रहन-सहन के साधन, यातायत, चप्पल और औषधि तक का निर्माण स्वयं करता था। फिर बदलते और बीतते वक्त के साथ कदमताल करते हुये इंसान ने संघ बनाये और लोगों को कबीलों मे संगठित कर साम्राज्य का निर्माण शुरू हुआ। यहीं से मानव का मष्तिष्क और उसकी महात्वाकांक्षाओं ने मानव को एक सामाजिक और राजनैतिक प्राणी बनाया। फिर शुरू होता है साम्राज्य के निर्माण का खेल। पर इस अवस्था तक मानव अभी भी एक संग्रह कर्ता ही था।
साम्राज्य के विकास के साथ साथ मुद्रा का विकास भी हुआ। साथ ही इंसानों तथा संसाधनों को अपने कब्जे में करने की होड़ भी शुरू हुई। परिणाम स्वरूप इंसान में संग्रहण की प्रवित्ति बढ़ी। वैसे जिस प्रथम साम्राज्य की हमें पहली पक्की जानकारी मिलती है वह 2250 ईसा पूर्व में "सारगोन दी ग्रेट" का "अक्कादिआई" साम्राज्य था। उसने मेसोपोटामिया के जिस छोटे नगर से अपने साम्राज्य की शुरूआत की उसे कुछ ही दशकों में उसे आधुनिक इराक, सीरिया तर बढ़ा दिया। और इस प्रकार मानव इतिहास ने एक अलग मोड़ लिया। अब इन्सान खानाबदोश जीवन छोडकर बस्तिया बनाने और बस्तियों पर कब्जा करने मे लग गये।
मानव जीवन मे आयी कृषि क्रांति ने मानव के जीवन जीने की शैली और उसके समाज को काफी तेजी से परिवर्तित भी किया। वैसे मानव द्वारा लायी गयी कृषि क्रांति इतिहास की कुछ सबसे ज्यादा विवादास्पद घटनाओं मे से एक है। इस क्रांति के समर्थकों का मानना है कि इस क्रांति ने मानव जाति के लिए प्रगति और समृद्धि के नए रास्ते खोलें। जबकि वहीं दूसरी तरफ इसके विरोधियों का मत है कि यह क्रांति जीवो एवं पर्यावरण को तबाही की ओर ले गई। यह इतिहास का वह निर्णायक मोड़ था जहां इंसान ने प्रकृति के साथ अपनी सहजीविता को छोड़कर अपनी लालच की पूर्ति के लिए प्रकृति से अलगाव की दिशा में तेजी से बढ़ा। वह धीरे धीरे प्रकृति को अपने काबू में करने का प्रयास करने लगा।
कृषि क्रांति और साम्राज्य के निर्माण में आबादी में काफी आमूलचूल परिवर्तन किए। जनसंख्या वृद्धि तेजी से बढ़ी। इंसान के लिए अब जटिल कृषक समाज को छोड़कर अपने पुराने शिकार और संग्रह के समय में लौटना असंभव हो गया। 10000 ईसा पूर्व जहां पृथ्वी पर लगभग 80 लाख खानाबदोश और भोजन खोजी मानव प्रजातियां रहती थी वहीं 1000 ईसा पूर्व तक आते-आते इनकी संख्या घटकर 10-20 लाख के बीच हो गई। परंतु इनकी यह संख्या उस समय दुनिया में निवास कर रहे 2500 लाख किसानों की बड़ी आबादी के सामने काफी बौनी रह गयी। ..................
.......क्रमश: जारी
स्रोत-: किताब- जल थल मल- लेखक- सोपान जोशी,
मानव जाती का संक्षिप्त इतिहास-युवाल नोआ हरारी
और कुछ अन्य किताबें ।
21 comments
Click here for commentsमनुष्य को समझना होगा कि प्रकृती ही उसकी सहजीवनी है,बाकी सहजीवनी के साथ हुऐ दोहन का परिवर्तन का तांडव हम देखी रहे हैं?
Replyजी बिल्कुल सही कहा आपने। हमें फिर से प्रकृति को लेकर संजीदा होने की जरूरत है।ऐसे ही आप अपनी टिप्पणी देते रहें और अपने बहुमूल्य सुझाव भी। आभार।🙏
ReplyYah samaj sabhyata ke vikas ki taraf badh rha ya vikriti ki taraf..
ReplySamsya jatil hai,iska hal aasan nhi...
Manusya prakriti k sath udanta krke samay samay pr uska dushparidam bhugat rha aur bhugata hi rhega..
जी आपने सही कहा। मनुष्य ने प्रकृती पर आधिपत्य जमाने की कोशिस की है और उसका परिणाम वह भुगत रहा है। वैसे ब्लॉग आपको कैसा लगा जरूर बतायें साथ ही अपने बहुमुल्य सुझाव भी देते रहे। आभार
ReplyBhot hi achha vishay ha guru ji.
ReplyYadi aise hi yuva pidhi
Aise vaishvik muddo par chintan kare to sambhavtah manav apne jeewan aur prakriti ke samip punah vapas aa sakta hai.
Kripya aise muddo ko jarur aap sabke samaksha laye, khas taur se yuva pidhi ko samarpit kre...
.
Kyoki bhavishy unhi ke hatho me hai...
Sundar lekh k liye dhanyawad..
Kafi gyanvardhak blog h jo itihas ki jaankari k sath sath vartmaan ki samsyayo par b roshni dalta hai aur hume chintan karne k liye majboor karta hai.. Lage raho tiwari Ji
Replyजी बेहद शुक्रिया। आपकी कही बातों को ध्यान में रखकर ही मैने ऐसे मुद्दे पर लिखना शुरू किया है। ऐसे लेख अपने दोस्तों, सहयोगियों के साथ लिंक साझा कर आप भी युवा पीढ़ी तक इस पहुचाने मेंअपना योगदान दे सकतें है।
Replyशुक्रिया सर जी। आप ऐसे ही उत्साह वर्धन करते रहें और इसे ज्यादा से ज्यादा मित्रों और छात्रों तक सेयर कर उन्हे भी लाभान्वित करें।
Replyबहुत शानदार तरीके से लिखा गया संजीदा मुद्दा, ज्ञान की तहें खोल दी आपने.. बधाई
Replyबहुत शानदार भैया, आपने मानव के आरंभिक इतिहास को बहुत संक्षिप्त किन्तु रोचक तरीके से चित्रित कर दिया है। अगले लेख की प्रतीक्षा है....����
Replyशुक्रिया भाई। बस ऐसे ही उत्साह वर्धन करते रहो। अगला लेख जल्द ही आयेगा।
Replyजी शुक्रिया। आगे भी ऐसे ही उत्साहवर्धन करते रहें।
Replyबहुते खूब
Replyबहुते ज्ञानबर्धक
Replyतहेदिल से शुक्रिया आपका इस आशीर्वाद से कुछ हमको भी ज्ञान हुआ
Replyजी शुक्रिया। बस ऐसे ही पढ़कर अपनी टिप्पड़ी देते रहिये बन्धू
Replyमानव विकास पर बेहद सटीक टिप्पणी साथ ही समावेशी विकास की महत्ता की ओर इशारा करता हुआ ज्ञानवर्धक ब्लाॅग।
Replyशुक्रिया मित्र। कृपया हमें ऐसे ही अपनी बहुमूल्य टिप्सुपणी और सुझाव से भी हमें नवाजते रहें। लेख की अगली कड़ी जल्द पोस्ट करूंगा।
Replyमनुष्य की प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम ही हम आज भुगतान रहें हैं। बहुत अच्छी जानकारी दी है
ReplyVinay gupta
ReplyThank you sir. Will.keep posting more articles like this .
ReplyConversionConversion EmoticonEmoticon