दोस्तों आज 23 जुलाई है। आज ही के दिन 23 जुलाई 1906 को महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म हुआ था। हमने आपने अपनी पढ़ाई के वक़्त क्रांतिकारियों से संबंधित कई किस्से पढ़े होंगे। क्रांतिकारियों से जुड़ा ऐसा ही एक किस्सा आज मैं आपको बताने जा रहा। ये किस्सा उस वक़्त का है जब क्रांतिकारी अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए पैसे की तलाश में थे। दो डकैतियां असफल हो चुकी थी। और अब वो कहीं से एभी पैसे की जुगाड़ में थे। तो हुआ यूं कि...
Chadra Shekhar Azad |
आज़ाद, बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारी काशी के एक मोहल्ले के एक उजाड़ से घर मे रहते थे। घर का नाम था कल्याण आश्रम। आवारा लड़को की तरह रहन सहन बनाया था क्रांतिकारियों ने ताकि किसी को पता न चले। गाना बजाना काम था। बाहर के कमरे में वाद्य यंत्र बिखरे पड़े रहते थे। कोई भांप नही सकता था कि यहाँ क्रांतिकारी रहते है। अंदर के कमरे में क्रांतिकारियों की गुप्त मीटिंग हुआ करती थी।
दो डकैतियां पहले ही असफल हो चुकी थी। धन की शख्त जरूरत थी। सब चिन्तित की बिना धन के गतिविधियों को अंजाम कैसे दिया जाएगा। इसी बीच रामकृष्ण खत्री जो बनारस में सन्यासी के वेश में रहते थे ने ज्यादा पैसे पाने का एक अच्छा और सस्ता तारीका बताया। उन्होंने बताया कि गाजीपुर में एक महंत जी है उन्होंने बहुत पैसे इकट्ठा किये है और वह अब बीमार चल रहे है। और जल्द ही मरनेवाला है।
उन्हें अपने आश्रम के लिए एक योग्य शिष्य की तलाश है जिसे वह अपनी गद्दी और संपत्ति सौंप कर मर सके।
Varun Gandhi Book - A RURAL MANIFESTO
सबको आइडिया भा गया। निर्णय हुआ आज़ाद शिष्य बनेंगे। पर आज़ाद को यह पसंद न था। उन्हें लगा यह उस महात्मा के साथ धोखा है। पर बिस्मिल ने समझाया कि पैसा हम नहीं तो कोई और ले ही लेगा। और कौन सा हम पैसे को अपने स्वार्थ या परिवार के कार्य के लिए उपयोग करेंगे।
देश के लिये ही तो लड़ रहे। उसे मातृभूमि की रक्षा के लिए ही खर्च करना है। आख़िर आज़ाद मान गए और गाजीपुर महंत के आश्रम में शिष्य बनने पहुच गए। महंत इनके कद काठी, भाषा और चमकते ललाट से प्रभावित हुआ। उसने आजाद को अपना शिष्य बना लिया।
आज़ाद वहाँ रह कर महंत की सेवा करने लगे। लेकिन जिसने देश के लिए घर-बार सब त्याग दिया हो और जो आज़ाद परिंदे की तरह खुले आसमान में विचरण किया हो भला वह एक आश्रम में कब तक कैद रहे और गुरु की सेवा करे।
उन्हें तो मातृभूमि की सेवा करनी थी जिसका उन्होंने प्रण लिया था। कई दिन बीते। महंत ठीक होने लगा। आज़ाद को लगा अब तो ये मरेगा नही मैं कहाँ फंस गया। बनारस दोस्तो को पत्र लिखा।
" महंत जी दिनोदिन मोटे होते जा रहे हैं। अब तो उन्होंने खूब फल-फूल भी उड़ाने शुरू कर दिए हैं। फिलहाल उनके मरने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। कृपया आप लोग अब मुझे यहाँ से छुड़ा ले जाएँ।”
धन की कोई और व्यवस्था की जाए।
पत्र साथी मन्मथनाथ को मिला। मन्मथनाथ एक और क्रांतिकारी मित्र के साथ गाजीपुर महंत के आश्रम में साधु वेश में पहुचे। आश्रम देखा तो चकित हुए। विचार आया क्यों न इसे अड्डा बनाया जाय। खैर दोनो क्रांतिकारी अभी विचार करते हुए आश्रम में घूम ही रहे थे कि आज़ाद वहां सन्यासी के वेश में आगए। बातचीत हुई। अंत मे आज़ाद ने कहा यहाँ से पिंड छुड़वाओ। आज़ाद उखड़े उखड़े रहने लगे थे। डर था कहीं भेद न खुल जाए। महंत ने कई बार उनसे उनके अन्यमनस्क होने का कारण पूंछा पर आजाद गोल मटोल जवाब देकर टाल देते थे। और फिर एक दिन रात को आज़ाद आश्रम छोड वहां से निकल लिए। धन पाने की ये युक्ति भी असफल रही।
ConversionConversion EmoticonEmoticon