शहीद कैप्टन विजयंत थापर की कहानी

 

कारगिल युद्ध के दौरान 28-29 जून 1999 की रात को राजपूताना राइफल्स के जाबांज कैप्टन विजयंत थापर अल्फा कंपनी की लीडिंग प्लाटून की कमान संभाल रहे थे। इसी अल्फा कंपनी को ऑपेरशन विजय के दौरान उत्तर से द्रास सेक्टर में नोल एरिया पर कब्जा जमाए दुश्मन की सैन्य टुकड़ी पर हमला करने का काम सौंपा गया था। कैप्टन विजयंत थापर (मरणोपरांत वीरचक्र से सम्मानित) ने द्रास में मोर्चे से अपने सैनिकों का नेतृत्व किया। दुश्मन सैनिक जो कि नॉल की पहाड़ी पर बेहतर स्थिति में थे लगातार गोलियों की बारिश किये जा रहे थे। पतली पहाड़ी जहाँ से होकर केवल दो सैनिक ही एक बार मे गुजर सकते थे से गुजरकर ही दुश्मन पर धावा बोला जा सकता था। पर दुश्मन की लगातार गोलीबारी से जान का खतरा था। 


विजयंत थापर ने काफी देर तक इंतजार किया और जब लगा कि अब गोलीबारी नही रुकेगी तो वह जान की परवाह किये बगैर पहाड़ी से बाहर निकल दुश्मन के मशीन गनर पर गोली बरसाने लगे। अपने युवा प्लाटून कमांडर की कार्रवाइयों से उत्साहित, सैनिकों ने दुश्मन की हावी स्थिति के खिलाफ पहाड़ी पर चढ़ाई की। इस दुस्साहसिक कार्रवाई ने दुश्मन को एक सामरिक रूप से बेहतर स्थिति को छोड़ने के लिए हतोत्साहित और मजबूर होना पड़ा। नॉल को 29 जून 1999 को वापस ले लिया गया, लेकिन वीर कैप्टन थापर शहीद हो गए। थापर के सर्वोच्च बलिदान ने तोलोलिंग में तिरंगे को नोल के ऊपर फहराया। उन्हें उनके और अनुकरणीय वीरता के लिए मरणोपरांत वीरचक्र से सम्मानित किया गया। उनकी बेजोड़ वीरता और सर्वोच्य बलिदान को देश हमेशा याद रखेगा। 


Captain Vijayant pics
वीर चक्र विजयंत थापर 



जानी मानी लेखिका रचना रावत बिष्ट ने अपनी किताब " कारगिल- युद्ध की कुछ अनकही कहानियां " में कैप्टन विजयंत की कहानी को कुछ यूं बयां किया है-


29 जून 1999 की रात के 2 बजे का समय। कैप्टेन विजयंत थापर द्रास के बड़े-बड़े खुरदुरे शिलाखंडों के पीछे अपनी पोजिशन लेके लेटे हुए हैं। दोनो टांगे फैलाये हुए अपनी उसी पोजिशन में लेटे हुए वह अपनी राइफल की लेंस से सामने देखतें है।वहां उनके अलावा उनके सहयोगी नायक तिलक सिंह है जो अपनी कोहनी के सहारे टिकाई अपने शरीर को हल्का ऊपर उठकर अपनी एलएमजी में मैगज़ीन भर रहे हैं। चांद उनके पीछे डरावनी सुंदरता की एक विशाल दूधिया रोशनी फैलाये है जोकि नीचे रक्तपात के बिल्कुल विपरीत है। चांदनी रात की किरणें नंगी चट्टानों से परावर्तित होकर सैनिकों को अपनी नरम भूरी चमक से नहला रहीं है। 


Captain Vijayant Thapar
शहीद विजयंत थापर


लड़ाई पूरी रात से चल रही है। दुश्मन के पहले दो ठिकानों पर कब्जा कर लिया गया है। तीसरा ठिकाना उनके सामने है, इतने करीब लेकिन निराशाजनक रूप से पहुंच से बाहर। दुश्मन सैनिकों के मशीन गन से गोलियों की आग की एक निरंतर धारा उन्हें बचाते हुए चट्टान से टकरा रही है, और उन्हें संकीर्ण पहाड़ी पर आगे बढ़ने से रोक रही है जिससे होकर एक समय में सिर्फ दो सैनिकों ही जा सकती है। विज्यंत के पास दुश्मन की गोलीबारी को कमजोर करने वाला गतिरोध काफी था।  नियंत्रित रोष के साथ, वह उस बंदूक को चुप कराने का फैसला करतें है जो उनके आदमियों को आगे बढ़ने से रोक रही है।


उनकी इंद्रियां उन्हें बचने के लिये कवर के पीछे रहने का संदेश दे रही है, लेकिन विजयंत हमेशा दिल की सुनने वालों में से थे। अपने आप को जिस खतरे में डालते हुए भी खतरे से बेखौफ, वह दुश्मन की मशीनगन से बरसती गोलियों के थोड़ा शांत होने की प्रतीक्षा करतें है। जैसे जी दुश्मन की गोलीबारी थोड़ी रुकती है विजयंत पहाड़ी से बाहर निकलते हैं। निकलते ही दुश्मन के मशीन गनर पर सावधानी से निशाना लगा गोलियों की एक धारा उसके ऊपर छोड़ देतें है। 


Veer chakra shaheed Vijayant Thapar
मरणोपरांत वीर चक्र विजेता शहीद विजयंत थापर


चांदनी में नहाए हुए उनको एक पाकिस्तानी स्नाइपर जो कि एक चट्टान पर बैठा है देख लेता है। स्नाइपर अपनी राइफल उठाता है, सावधानी से निशाना लगाता है और गोली चला देता है। एक गोली हवा को चीरती हुई विजयंत की बाईं कनपटी पर लगती है। धातु की गोली उनके मस्तिष्क को छलनी करती हुई उनकी दाहिनी आंख से बाहर निकल जाती है। 


अपने युवा अधिकारी को गिरते हुए देखकर तिलक सिंह स्तब्ध रह गए। अपने एलएमजी को छोड़ , वह रेंगतें हुए थापर के पास पहुचे और उन्हें खींचकर वापस लातें है। उनके शरीर से बह रहे गर्म रक्त की धारा धूसर चट्टानों पर फैल रही है। खून से लथपथ घाव से विजयंत की जैकेट भीगी चुकी है लेकिन उनके खूबसूरत चेहरे पर एक भी खरोंच नहीं आई है। उनका सिर एक तरफ झुक जाता है। उनका हेलमेट उनके सिर के काले पटके (सिर को ढकने वाले कपड़े का एक टुकड़ा) को अनावृत करते हुए नीचे लुढ़क जाता है। विजयंत अपने साथी की बाहों में अपनी अंतिम सांस लेतें है और फिर सदा के लिए उनकी आंखें बंद हो जाती हैं। 


Last letter of Shaheed Vijayant Thapar
विजयंत थापर का अंतिम पत्र (स्रोत-ट्विटर)


बहादुर लेफ्टिनेंट विजयंत थापर, या रॉबिन, जैसा कि उनके माता-पिता उन्हें प्यार से बुलाते थे, केवल बाईस साल की उम्र में देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। छह महीने पहले ही वह बड़ेगर्व से अपने पिता से हाथ मिलाते हुए और अपनी अश्रुपूर्ण माँ को गले लगा कर आईएमए से पासआउट होकर निकले थे। ये वो पल था जब उन्होंने वर्दी पहनने के अपने बचपन के सपने को पूरा किया था। नॉल (द्रास) की लड़ाई में, उन्होंने साबित कर दिया कि वह उस सम्मान के कितने योग्य थे।


स्रोत-  कारगिल- अनटोल्ड स्टोरीज फ्रॉम दि वार - रचना रावत विष्ट





Previous
Next Post »

भगत सिंह और साथियों की उन्हें फांसी देने की बजाय गोली से उड़ाने के लिए गवर्नर पंजाब को चिट्ठी

"हमें गोली से उड़ाया जाए"  आज़ादी के नायक शहीदे आज़म भगत सिंह के विचार आज भी युवा पीढ़ी को जोश से भर देते है। मात्र 23 साल की उम्र मे...