23 मार्च 1931 के दिन सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गयी थी। जेल के दौरान भगत सिंह अपने भाईयों और दोस्तों के साथ पत्र व्यवहार के माध्यम से निरंतर विचारों का आदान प्रदान करते रहते थे। अपनी फांसी के 20 दिन पहले उन्होंने जेल से अपना आखिरी खत अपने भाइयों के नाम लिखा था। ये खत 3 मार्च 1931 लाहौर सेंट्रल जेल से उन्होंने दोनों भाइयों कुलबीर सिंह और कुलतार सिंह के नाम ये पत्र लिखा गया था।
भगत सिंह (स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस)
भाई कुलबीर सिंह के नाम आखिर खत:
सेंट्रल जेल, लाहौर
3 मार्च, 1931
प्रिय कुलबीर सिंह,
तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया। मुलाकात के समय तुमने अपने खत के जवाब में कुछ लिख देने के लिए कहा था। कुछ शब्द लिख दूँ, बस। देख, मैंने किसी के लिए कुछ न किया। तुम्हारे लिए भी कुछ न कर सका। आज तुम सबको विपदाओं में छोड़कर जा रहा हूँ। तुम्हारी ज़िन्दगी का क्या होगा? गुजर किस तरह करोगे? यही सब सोचकर काँप जाता हूँ। लेकिन भाई हौसला रखना। विपदाओं में भी कभी न घबराना। इसके सिवाय और क्या कह सकता हूँ। अमेरिका जा सकते तो बहुत अच्छा होता। लेकिन अब तो यह नामुमकिन जान पड़ता है। धीरे-धीरे हिम्मत से पढ़ लो। अगर कोई काम सीख सको तो बेहतर होगा। लेकिन सबकुछ पिता जी की सलाह से करना। जहाँ तक सम्भव हो प्यार-मुहब्बत से रहना। इसके सिवाय और क्या कहूँ? जानता हूँ कि आज तुम्हारे दिल में ग़म का समुद्र ठाठें मार रहा है। तुम्हारे बारे में सोचकर मेरी आँखों में आँसू आ रहे हैं; लेकिन क्या किया जा सकता है? हौसला रख मेरे अजीज! मेरे प्यारे भाई, जिन्दगी बड़ी सख्त है और दुनिया बड़ी बेरहम। लोग भी बहुत बेरहम हैं। सिर्फ हिम्मत और प्यार से ही गुजारा हो सकेगा। कुलतार की पढ़ाई की चिन्ता भी तुम्हीं करना। बहुत शर्म आती है और अफसोस के सिवाय मैं कर भी क्या सकता हूँ। साथवाला खत हिन्दी में लिखा है। खत बी.के. की बहन को दे देना।
अच्छा नमस्कार, अजीज भाई अलविदा…रुखसत।
तुम्हारा शुभाकांक्षी,
भगत सिंह।
भाई कुलतार के नाम आख़िरी खत:
सेंट्रल जेल, लाहौर
3 मार्च, 1931
प्यारे कुलतार,
आज तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर बहुत दुख पहुँचा। आज तुम्हारी बातों में बहुत दर्द था। तुम्हारे आँसू मुझसे सहन नहीं होते।
बरखुरदार, हिम्मत से विद्या प्राप्त करना और स्वास्थ्य का ध्यान रखना। हौसला रखना, और क्या कहूँ—
उसे यह फिक्र है हरदम नया तर्ज़े-जफ़ा क्या है,
हमें यह शौक़ है देखें सितम की इन्तहा क्या है।
दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख़ का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही, आओ मुक़ाबला करें।
कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहले-महफ़िल,
चराग़े-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ।
हवा में रहेगी मेरे ख़याल की बिजली,
ये मुश्ते-ख़ाक है फानी, रहे रहे न रहे।
अच्छा रुख़सत। खुश रहो अहले-वतन; हम तो सफ़र करते हैं। हिम्मत से रहना। नमस्ते।
तुम्हारा भाई,
भगत सिंह।
स्रोत- भगत सिंह एवं साथियों के दस्तावेज।
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