आखिर गांधी मरते क्यों नहीं ?

आज ही के दिन 73 साल पहले एक हिन्दू कट्टरपंथी द्वारा महात्मा गांधी की हत्या कर दी गयी। ये हत्या एक सोची समझी साजिश का नतीजा थी। गांधी अपने वक़्त में कट्टरपंथी हिन्दुओ और मुसलमानों की आंख की किरकिरी बने हुए थे। उनकी हत्या के प्रयास पहले भी हो चुके थे। हत्या को सही ठहराने के लिए अनेक नाजायज तर्क वितर्क आपको मिल जाएंगे। पर एक बात जो देखने लायक है वह यह कि हत्या के इतने सालों के बाद भी गांधी जिंदा है।

Gandhi assasination
Mahatma Gandhi 

 देश दुनिया को उनकी जरूरत रोज पड़ रही है। दुनिया के बड़े बड़े महारथी भी गांधी की लाठी लेकर खुद को चमकाने में लगे है। गांधी को अभी रोज मारने की नाकाम कोशिश होती रहती है पर ये गांधी बाबा हैं कि अपनी लाठी ऐसी गाड़े है कि मरने का नाम ही नहीं ले रहे। इसका एक ही कारण है कि गांधी कोई हाड़-मांस का पुतला भर नहीं कि आप उनको भस्म कर दो। गांधी महज एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक विचार है, एक संस्कृति है, एक संस्कार है, एक धर्म है और स्वयं में एक संस्था है। 
आज पर्यावरण बचाना हो या स्वच्छता का पालन करना हो बिना गांधी की जादुई लाठी के ये काम शुरू ही नहीं होते। तानाशाही हुकूमतों की चूलें हिलानी हो तो गांधी का सत्याग्रह काम आता हैं। खेती किसानी हो या शिक्षा या रहन-सहन के तरीके की बात हो गांधी हमे मार्गदर्शन करते नज़र आते हैं। धारणीय विकास जैसी शब्दावली के जन्म से दशकों पहले ही गांधी हमे धारणीय जीवन की शिक्षा देकर चले गए। गांधी की सत्य अहिंसा की ताबीज को स्वयं उनके हत्यारे भी जरूरत पड़ने पर ढाल की तरह अपना लेते है। यही गांधी की खूबी है। उन्होंने हमे एक नई दृष्टि दी देखने की, सोचने की। एक नई राह बताई चलने के लिए। जिसपर चलकर मंडेला और लिंकन महान बन खुद को इतिहास की किताबों में दर्ज कर गए। अब गांधी हमारे जीवन के हर हिस्से में दखल दे चुके है। जैसे जैसे हम आगे बढ़ते जाएंगे गांधी निरंतर हमारी जरूरत बनते जाएंगे। 

गांधी को मारने वाले दिन ब दिन मरते रहेंगे लेकिन गांधी जिंदा रहेंगे। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य और विवेकानंद की तरह गांधी हमारी सहस्त्राब्दियों की आध्यात्मिक मनीषा और सांस्कृतिक चेतना के अभिन्न अंग बन चुके है। 


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