गाँव में क्या है शहर से बढ़ कर, चलिए चलकर गाँव में देखें;
पनघट और चौपाल का मंज़र, चलिए चलकर गाँव में देखें।
गोरी, घटाएँ, घूँघट, गागर, चलिए चलकर गाँव में देखें;
शर्त है लेकिन खूब सँभल कर चलिए, चलकर गाँव में देखें।
सादा जीवन, सच्चे दुख-सुख, गर्म आँसू, ठण्डी मुस्कानें;
उमड़ा हुआ एक प्यार का सागर, चलिए चलकर गाँव में देखें।
भूली-बिसरी तहज़ीबों के धुँधले-धुँधले नक्श-ओ-निगार;
क्या-क्या है पुरखों की धरोहर, चलिए चलकर गाँव में देखें।
शहरों में तो चढ़ जाता है पीतल पर सोने का पानी;
कंगन, झुमके, पायल, झूमर, चलिए चलकर गाँव में देखें।
सूरज रोज़ सवेरे उठकर करता है तैयार जिसे ख़ुद;
तारों जड़ी वो चाँद की चूनर, चलिए चलकर गाँव में देखें।
हिन्दू-मुस्लिम मिल के मनायें होली हो या ईद का मिलन;
त्योहारों के रूप उजागर, चलिए चलकर गाँव में देखें।
भेद-भाव से नाता तोड़ें लेकिन पक्के शेख़-ओ-बिरहमन;
दोनों मिलेंगे एक डगर पर, चलिए चलकर गाँव में देखें।
ऊँचे मकानों में न मिलेंगे, पीपल-बरगद-नीम के साये;
चौखट-चौखट धूप के तेवर, चलिए चलकर गाँव में देखें।
बच्चे-बूढ़े, नर और नारी, सब ही मिलें उल्लास से भरे;
धरती की पूजा के अवसर, चलिए चलकर गाँव में देखें।
बच्चे हमें देखें जो अचानक, मारे खुशी के ताली बजायें;
फेंक के साकित झील में कंकर, चलिए चलकर गाँव में देखें।
दुनिया भर की सारी झीलें ‘नूर’ निछावर हों सब जिस पर;
ममता का वह मानसरोवर, चलिए चलकर गाँव में देखें।
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