व्यंग्य: प्रभु श्री राम और हनुमान जी की नागरिकता का सवाल !!

मैं सरजू तट पर पैदा हुआ रामराज्य की संकल्पना का कट्टर समर्थक हूं। चुनांचें मर्यादा पुरूषोत्तम राजा रामचन्द्र का मुझपर अगाध प्रेम है। मेरी बुद्धि और तर्क से प्रभावित होकर वे अक्सर सपने में आकर अपनी समस्यायों के निराकरण पर मेरी सलाह लेते रहते है। 

CAA Bill (SOURSE-BJP TWITTER)


आज रात एकाएक वे अपने परमभक्त हनुमान के साथ मेरे सपने में आ गये। काफी चिन्तित और व्यथित थे साथ ही साथ कुछ डरे हुये भी थे। दोनो को अपनी नागरिकता को लेकर बड़ी टेंशन थी। इस कड़ाके की ठण्ड में भी दोनो जने पसीने से तर-बतर थे। मेरे पूछने पर अपने उत्तरीय से स्वेद कणों को पोंछते हुये बोले " वत्स! हम इस नागरिकता संसोधन विधेयक  और एनआरसी के कारण चिंतित हैं "। " वे उदास मन से बोले जिस आर्यावर्त का मैं कभी चक्रवर्ति सम्राट हुआ करता था उसी आर्यावर्त में एनआरसी और नागरिकता संसोधन विधेयक के कारण मै स्वयं घुसपैठिया बनने की कगार पर आ गया हूं। 


पहले तो मुझे मंथरा की धूर्तता के कारण अच्छे खासे राज्य से बेदखल होना पड़ा । बाद में मैं 14 वर्ष जंगल-जंगल भटका । देवी सीता की खोज  में लंका तक भी गया। जन्म का और अन्य कोई स्थायी निवास प्रमाण भी नहीं बचा अब। जो कुछ साक्ष्य बचा भी है वह भारत श्रीलंका की सीमा पर 'रामसेतु' नामक पुल ही बचा है।  परन्तु नये परिपेक्ष्य में उसका कोई लाभ नहीं। 


 मै अब एनआरआई या ओवरसीज सीटिजन के लायक भी नहीं। सम्प्रति मैं श्रीलंका से आया एक यायावर हिन्दू मात्र हूं। मै तो उत्पीड़ित भी नहीं हूं। श्रीलंका से आये लोगो पर सरकार का कोई ध्यान ही नहीं। वर्षो किसी तरीके से तंबू-संबू में रहकर समय काटा और अब जब मुद्दत बाद कहीं जाके एक घर (यानी मंदिर) नसीब होने वाला था तो ये दो कानून बीच में टपक रड़े। अब मंदिर का सपना भी ओझल होता नजर आने  लगा है साथ ही साथ नागरिकता भी जाने वाली।  यह कहते कहते प्रभू की आंखें भर आयी। बगल में खड़े हनुमान जी की भी दशा दयनीय थी। 


वैसे हनुमान जी आजीवन बहुत ही संयमी और मितभाषी रहे है। पर कल रात प्रभू श्री राम की और अपनी नागरिकता खोने की व्यथा से उपजी परेशानी के कारण असंयमित से नजर आये। जैसे ही प्रभू श्रीराम दीन भाव से अपनी व्यथा सुना कर शान्त हु़ये तुरन्त हनुमान जी टीवी चैनल के ऐंकरों की तरह भड़क गये। 


वे बोले प्रभू चिंता न करें यदि आपको  नागरिकता नही मिली और आप के साथ अत्याचार हुआ तो मै शान्त न बैठूंगा। यदि मैं स्वर्णमयी लंका को जला कर खाक कर खाक सकता हूं तो  उसके आगे इस आर्यावर्त के लिये संकोच तक न करूंगा ? यहां तो जीडीपी से लेकर, निवेश, निर्यात, बचतदर , रूपये की कीमत सब के सब तो रसातल में जा रहे। और दूसरी तरफ मंहगाई, बेरोजगारी, मुद्रा स्फिति, प्याज-टमाटर के दाम आसमान छू रहे। लंका तो इससे लाख गुनी कीमती थी तब भी मैने उसे जलाने मे रंच मात्र संकोच न किया।  यहां तो जीडीपी अभी 5 ट्रिलियन  भी नही है।   जहां की सरकार खुद की सम्पत्तियो को धीरे धीरे  बेंच रही तोे ऐसे साम्राज़्य को खाक करने में क्या संकोच। मैं बदला लेके रहूगां। 


इस पूरे प्रकरण के बीच मैं शांतचित्त एंव दत्तचित्त होकर सारे वार्तालाप को सुन रहा था। साथ ही साथ हनुमान जी की ब्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र पर ऐसी पकड़ पर अचम्भित भी। मैंने मन ही मन सोचा " गुरू!  आपको तो कैबिनेट मे होना चाहिये था । इहां कहां बकैती में पड़े है ।" पर अगले ही क्षण मैं देश की इस दशा पर दुखी भी हुआ कि कहां एकतरफ  ग्यानी वानरराज आज दर दर की ठोकर खा रहे और नकली वानर राज कर रहे। 


 मैं अभी मन ही मन ये सब सोच ही रहा था कि हनुमान जी की रौद्र रस से ओतप्रोत बातें सुन तुरन्त प्रभू विचलित हो उठे । उन्होने तत्क्षण हनुमान जी को टोकते हुये  कहा "वत्स ! ये मत भूलो की ये पवित्र भारतभूमि अपनी मातृभूमि है। तुम इस राज्य की सत्ता को राख करने की सोच भी कैसे सकते हो ? ये हमारे लिये पूज्य है " साम्यवादियों और वामपंथियों की तरह न बनों।"  हनुमान जी को तुरन्त अपनी गलती का एहसास हुआ और झट उन्होने प्रभू से क्षमा मांग ली और प्रभू ने मुस्काराते हुये सर हिला कर उन्हे माफ भी कर दिया ।


ऐसी विकट घड़ी में प्रभू के  संयम , देशप्रेम, क्षमाशीलता, दयाभाव और राज्य के प्रति उनकी निष्ठा को देखकर मैं भी मन ही मन भावविभोर हो उन्हे सहस्रों बार प्रणाम करने लगा।


हनुमान जी का क्रोध अभी शान्त ही हुआ था कि मैने प्रभु श्री राम से पूंछ लिया - " प्रभु ! तो आप संकट की इस घड़ी में मेरे सें क्या सहयोग चाहतें है ? आपके लिए आपका ये भक्त हर संभव प्रयास करेगा " 


मै अभी अपनी बात कहके चुप ही हुआ था कि हनुमान जी फिर बरस पड़े। पर इस बार उनके स्वर सें उनकी मानसिक व्यथा झलक रही थी। वे रूंवांसे से होकर बोले " आप को तो बस प्रभू की ही पड़ी है। हमारी समस्या की तो किसी को कोई चिन्ता ही नही । यहां हमारी जान निकली जा रही है। प्रभू का क्या ? "मूवल हाथी तौ नौ लाख"। कुछ भी नहीं तो कम से कम ये तो भूतपूर्व चक्रवर्ती सम्राट ठहरे। कौनो कोटा-वोटा लगा के कोई न कोई जुगाड़ तो कर ही लेगें नागरिकता लेने का।  हम तो बानर जाति ठहरे? हमारा क्या होगा ? हम कहां और किसके पास जायेगें ? कैसे साबित करेगें नागरिकता ? कौन सुनेगा मेरी बात ? कहां से अपना और बाप दादा का  प्रमाण पत्र लाऊं ? 


 हनुमान जी अब पूरा फ्लो में आ चुके थे। वे बौले - मैं तो हमेशा से जंगल जंगल ही भटका। प्रभू और अपने स्वामी सुग्रीव की भक्ति ही की है। सम्प्रति इस देश में मेरा पहले वाला भौकाल भी नही रहा। आजकल यहां मुझसे ज्यादा भौकाल तो मेरे नाम पर बने "बजरंग दल" वालों का हो गया है। वे जो चाहे सो कर लेते और हम है कि दर दर नागरिकता के लिये भटक रहे।


संकटमोचन को ऐसे संकट में देखकर मेरा कलेजा मानों फट सा गया। मैं प्रभू से बोला आप दोनों की समस्या विकट है। पर टेशन न लिजिये महराज हम है ना। मन ही मन मै भी फुल के गुब्बारा हो रहा था। ऐसी परिस्थिति में  मुझे भी भगवान और हनुमान जी के सामने अपना भौंकाल टाइट करने का सुनहरा मौका भी मिल गया। 


मौके पर चौक्का मारते हुये मै बोला प्रभू टेंशन-वेंशन न लिजिये माना कि आप दोनो की समस्या बहुत ही विकट है पर आपने सहायता भी किसी ऐरे गैरे नथ्थू खैरे से नहीं मांगी है। हमको हल्के मे ना लिजियेगा। सरयू तट के सरयूपारीय ब्राह्मण है। दो चार मंतरी संतरी तो हमेशा जेब में रखता हूं। राजनीति और  कूटनिति में चाणक्य का चचा हूं। और ये  रामराज्य वाला आर्यावर्त नहीं है। यह कलियुग का आर्यावर्त है। यहां जुगाड़ हो तो पलक झपकते आप  यू़.एन. का सेकेट्ररी जनरल भी बन सकते है , ये नागरिकता किस खेत की मूली है।


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