Mirabai Chanu |
आज पहले ही दिन भारतीय भारोत्तोलक मीरा बाई चानू ने भारत के लिए पहला मैडल जीता। उन्होंने यह मेडल 49 किलोग्राम वर्ग में जीता। मणिपुर की पहाड़ियों में बसे एक गाँव में पैदा हुई लड़की का लकड़ी बीनने से लेकर ओलपिंक जीतने तक का सफर बहुत ही रोचक और प्रेरणा दाई है। आज मीरा बाई चानू देश की आन बान शान है। उन्होंने अपने कठोर परिश्रम से देश का मान बढ़ाया और आज करोड़ो भारतीयों की प्रेरणा स्रोत बन गयी।
26 साल की सैखोम मीराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 को उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर के पूर्वी इम्फाल जिले के नांगपोक काकचिंग नामक गाँव के एक हिन्दू परिवार में हुआ था। सामान्य हिन्दू परिवार में जन्मी मीरा बाई के पिता सैखोम कृती मैती मणिपुर के लोक कल्याण विभाग में एक छोटी नौकरी करते थे। मां सैखोम ongbi तोम्बी लाईमा एक छोटी दुकान चलाती थी। 6 भाई बहनों में मीरा बाई सबसे छोटी है। मीराबाई का बचपन अनेक कठिनाइयों और संघर्षो से होकर गुजरा।
26 साल की सैखोम मीराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 को उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर के पूर्वी इम्फाल जिले के नांगपोक काकचिंग नामक गाँव के एक हिन्दू परिवार में हुआ था। सामान्य हिन्दू परिवार में जन्मी मीरा बाई के पिता सैखोम कृती मैती मणिपुर के लोक कल्याण विभाग में एक छोटी नौकरी करते थे। मां सैखोम ongbi तोम्बी लाईमा एक छोटी दुकान चलाती थी। 6 भाई बहनों में मीरा बाई सबसे छोटी है। मीराबाई का बचपन अनेक कठिनाइयों और संघर्षो से होकर गुजरा।
Birth Place of Mirabai Chanu |
चानू का परिवार मणिपुर की मैती जनजाति से संबंध रखता है। बचपन मे चानू को परिवार के सदस्यों के साथ पहाड़ियों से जलावन की लकड़ी लाना पड़ता था। मीरा बाई बोझा उठाने में सबसे आगे रहती थी, कम उम्र में ही वह अपने बड़े भाइयों से ज्यादा लकड़ी पहाड़ियों से ढोकर लाती थी। घर वाले बेटी की इस प्रतिभा से प्रभावित हुए। परिवार ने उनका एडमिशन स्पोर्ट स्कूल में करने का सोचा।
मीराबाई का भारोत्तोलक बनने की कहानी भी काफी रोचक है। दरअसल आपको बता दें कि उनकी रुचि तीरंदाजी में थी। 12 साल की उम्र में मीराबाई तीरंदाजी में एडमिशन लेने गई पर तबतक रजिस्ट्रेशन बंद हो चुका था। फिर मीराबाई ने 20 किलोमीटर दूर खुमान लंपक स्टेडियम में भारोत्तोलन में एडमिशन ले लिया। और फिर इस खेल से उन्हें प्यार हो गया। और अगले 4 सालों तक मीरा बाई रोज पहाड़ियों से होते हुए घर से 20 किलोमीटर दूर स्टेडियम की यात्रा करती रही।
मीरा बाई बताती है कि भारोत्तोलन अत्यधिक बलप्रयोग वाला खेल है। और इसके लिए अच्छी खुराक होनी जरूरी है। इनके कोच इन्हें डाइट चार्ट देते थे जिनमें चिकन, मटन, अंडे की खुराक थी पर परिवार के पास रोजाना अंडे, मीट के लिए पैसे नही रहते थे।
मीरा बाई ने 2009 में छत्तीसगढ़ में एक युवा प्रतियोगिता में पहली बार स्वर्ण जीता। उनकी वास्तविक भारोत्तोलन यात्रा 2011 में अंतरराष्ट्रीय युवा चैंपियनशिप से शुरू हुई जहां उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। उसके बाद मीरा बाई ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा। उन्होंने भारोत्तोलन के राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़े और बनाये भी। 2016 ओलंपिक में क्वालीफाई किया। लेकिन कमर दर्द और खिंचाव के कारण पहले राउंड से ही बाहर होने वाली मीरा बाई ने कभी हार नही मानी। कुछ महीने खेल से दूर रहने के बाद उन्होंने फिर अभ्यास शुरू किया। और अपनी मेहनत, लगन, निष्ठा ,आत्म विश्वास और कठोर अभ्यास की बदौलत टोक्यो ओलंपिक के पहले दिन ही आज देश के लिए 49 किलोवर्ग में रजत पदक जीती।
मीरा बाई ने 2009 में छत्तीसगढ़ में एक युवा प्रतियोगिता में पहली बार स्वर्ण जीता। उनकी वास्तविक भारोत्तोलन यात्रा 2011 में अंतरराष्ट्रीय युवा चैंपियनशिप से शुरू हुई जहां उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। उसके बाद मीरा बाई ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा। उन्होंने भारोत्तोलन के राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़े और बनाये भी। 2016 ओलंपिक में क्वालीफाई किया। लेकिन कमर दर्द और खिंचाव के कारण पहले राउंड से ही बाहर होने वाली मीरा बाई ने कभी हार नही मानी। कुछ महीने खेल से दूर रहने के बाद उन्होंने फिर अभ्यास शुरू किया। और अपनी मेहनत, लगन, निष्ठा ,आत्म विश्वास और कठोर अभ्यास की बदौलत टोक्यो ओलंपिक के पहले दिन ही आज देश के लिए 49 किलोवर्ग में रजत पदक जीती।
ConversionConversion EmoticonEmoticon