सरदार पटेल द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रतिनिधियों के समक्ष 3 जून की योजना को स्वीकर करने के लिए प्रस्तुत किया गया तर्क ।

सरदार पटेल का संपूर्ण वाङ्मय

बॉम्बे क्रॉनिकल,16 जून, 1947

saardar patel speech on partition plan
Sardar patel (Photo- Economictimes)


अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में आज शाम पं. नेहरू का अनुसरण करते हुए एक ओजस्वी भाषण में सरदार पटेल ने महामहिम की सरकार के 3 जून के वक्तव्य को अपना पूर्ण समर्थन प्रदान किया। कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों को देखते हुए पिछले नौ महीनों में अंतरिम सरकार में अपने अनुभवों के आधार पर वह इस बात के लिए बिलकुल दुःखी नहीं थे कि ‘स्टेट पेपर’ को समाप्त कर दिया गया। यदि उन्होंने स्टेट पेपर को स्वीकार कर लिया होता तो पूरा भारत ही पाकिस्तान के रास्ते पर चल पड़ा होता। आज उनके पास भारत का 75 से 80 प्रतिशत भाग है, जिसे वे अपनी प्रतिभा से विकसित कर सकते हैं और मजबूत बना सकते हैं। लीग देश के बाकी भाग को विकसित कर सकता है।

लीग समिति, जिसने गुप्त रूप से अपनी बैठक की थी, 15 अगस्त के बाद संपूर्ण भारत का ही परिग्रहण करने की अपनी महत्त्वाकांक्षा पाल रही थी। यह प्रत्येक कांग्रेसी का कर्तव्य है कि वह भारत को शक्तिशाली बनाने, एक कार्य-कुशल सेना निर्मित करने एवं आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए मिल-जुलकर कार्य करें।



सदन ने अपने नेता पं. नेहरू को सुना। कांग्रेस के इतिहास में पहले कभी भी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने इतने महत्त्वपूर्ण विषय पर निर्णय नहीं लिया है। उन्होंने सिंध और पंजाब के अपने भाइयों की आशंकाओं पर पूरी सहृदयता जताई। भारत का विभाजन कोई भी पसंद नहीं करता और उनका हृदय बोझिल था। परंतु कुछ कठोर वास्तविकताएँ थीं, जिन्हें लोगों को ध्यान में रखना चाहिए। विकल्प यह था कि क्या केवल एक विभाजन हो या अनेक विभाजन। आज लड़ाई अंग्रेजों के खिलाफ नहीं है। अंग्रेज भारत में रहने के इच्छुक नहीं हैं और यदि वे रहना भी चाहते हैं तो भारत की सहमति के साथ ही तथा निश्चित रूप से वे इस देश पर शासन करने के इच्छुक नहीं हैं।



16 मई की योजना ने निस्संदेह उन्हें एक संयुक्त भारत दिया है। इसकी कमियों के बावजूद कांग्रेस इससे सहमत हुई। लेकिन इसमें एक रुकावट थी। यदि किसी एक या दूसरी पार्टी ने सहयोग रोक दिया तो इस योजना को कार्यान्वित नहीं किया जा सकता था। इस प्रकार ‘स्टेट पेपर’ की प्रकृति एक थोपे हुए फैसले जैसी थी; किंतु स्थिति आज भिन्न है। कांग्रेस को सच्चाई का सामना करना चाहिए। वह संवेगशीलता और अति भावुकता के साथ कार्य नहीं कर सकती। उन्हें शांतिपूर्वक लाभ और हानि का आकलन कर लेने के बाद ही एक सुनिश्चित निर्णय पर पहुँचना चाहिए।



सरदार पटेल ने इनकार किया कि कार्यकारिणी समिति ने इस योजना को भय के कारण स्वीकार कर लिया। हम लोग कभी भी भयभीत नहीं हुए। उन्होंने अनेक हत्याओं के लिए गहरा दुःख व्यक्त किया। 33 व्यक्तियों के एक परिवार में केवल 2 व्यक्ति ही बचे थे। अनेक लोग अंगहीन और जीवन भर के लिए अपाहिज हो गए थे। उन लोगों ने यह सब झेला। परंतु वह एक चीज के प्रति सशंकित थे और वह यह कि उन लोगों का इतने वर्षों का कठिन परिश्रम बरबाद या अलाभकारी सिद्ध न हो जाए। उन्होंने स्वाधीनता के लिए कार्य किया था और उन्हें इस देश के बड़े-से-बड़े भाग को स्वतंत्र और सुदृढ़ देखना चाहिए, अन्यथा न तो अखंड हिंदुस्तान होगा, न ही पाकिस्तान। इसके अलावा कार्यकारिणी समिति द्वारा सुझाए गए रास्ते को छोड़कर किसी भी अन्य रास्ते पर चलना न सिर्फ हानिकारक होगा, बल्कि वह कांग्रेस को संसार में उपहास का पात्र बनाकर रख देगा। यहाँ भारत के लिए अपनी स्वाधीनता प्राप्त करने का एक अवसर था। क्या वह उसे फेंकने जा रही थी? यह कहना गलत होगा कि—‘पहले अंग्रेजों को जाने दीजिए, फिर सभी समस्याएँ सुलझा ली जाएँगी।’ उनका समाधान कैसे किया जाना है और बाद में क्या होगा?



सरदार पटेल ने कहा कि उनके नौ महीने के कार्यकाल ने उन्हें ‘स्टेट पेपर’ के संभावित श्रेष्ठताओं के बारे में पूर्णतः भ्रांति-मुक्त कर दिया था। उन्होंने देखा कि मुसलिम कर्मचारी, उच्च पदाधिकारियों से लेकर चपरासी तक—कुछ सम्माननीय अपवादों को छोड़कर—सबके सब मुसलिम लीग के लिए थे। इसके बारे में कोई भ्रांति नहीं होनी चाहिए। एक-दूसरे पर दोषारोपण करना और आरोप लगाना प्रतिदिन का नियम बन गया था। उन्होंने इसे नौ महीने तक देखा था। पुलिस गोली चलाती थी और लोग उनसे कहते थे कि ‘मेयोज’ (Meos) ने किया। इन परिस्थितियों में वह क्या कर सकते थे या क्या कह सकते थे?



16 मई की योजना समाप्त हो गई, इसलिए वह प्रसन्न थे। इस योजना में संघर्ष और कलह के लिए काफी स्थान था। कांग्रेस पाकिस्तान का विरोध कर रही थी, लेकिन फिर भी सदन में प्रस्तुत प्रस्ताव में विभाजन के लिए सहमति दी गई। चाहे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को यह पसंद हो या न हो, पाकिस्तान पंजाब और बंगाल दोनों ही में पहले ही कार्यरूप में आ चुका था। ऐसी स्थिति में वह वास्तविक पाकिस्तान पसंद करेंगे, क्योंकि तब वे जिम्मेदारी का कुछ तो एहसास करेंगे।



‘स्टेट पेपर’ के अंतर्गत संपूर्ण भारत एक असह्य स्थिति से प्रभावित हो गया होता। सांप्रदायिक ‘वीटो’, जो लीग को दिया गया था, प्रत्येक राज्य में हमारी प्रगति को रोक देता। बहुसंख्यक लोगों को खड़े रहकर देखते रहना पड़ता और वे प्रशासन में कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं होते। परंतु अब उनके लिए अवसर है। वे सांप्रदायिकता की महामारी, अधिप्रतिनिधित्व (वेटेज) आदि, जो संसार के किसी भी संविधान में नहीं था, उसे यहाँ से निकालकर फेंक सकें। अब कोई ‘वेटेज’ नहीं। लीग ने कहा कि उन्हें गलियारा (कॉरीडोर) चाहिए और अन्यत्र शोरगुल मचा। हो-हल्ला करने से किसी समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। आवश्यकता इस बात की है कि शांति से रहकर कठिन परिश्रम किया जाए।



सरदार पटेल ने सिंध के अल्पसंख्यकों के साथ सहानुभूति जताई। परंतु शक्ति के अभाव में मात्र सहानुभूति किसी काम की नहीं होती। उन्हें शक्ति अर्जित करनी चाहिए। उन्होंने कांग्रेस जन से अपील की कि वे जिम्मेदारियों का वहन करने के लिए तैयार रहें। आंतरिक कलह देश को कमजोर करेगी।



पहले अंग्रेजों ने कहा कि वे जून 1948 तक चले जाएँगे। यह महसूस किया गया कि बीच की यह अवधि बहुत लंबी है। अब वे 15 अगस्त को जा रहे हैं, परंतु यह मध्यवर्ती समय भी काफी लंबा था। वर्तमान स्थिति के जारी रहने से देश प्रतिदिन क्षतिग्रस्त हो रहा था।



पूर्ण एकता होनी चाहिए। कांग्रेस में गुटों के लिए कोई जगह नहीं है। वह देश में अच्छे शासन और प्रगति के लिए विरोधी गुटों को भी अपने साथ शामिल होकर जिम्मेदारियों का वहन करने के लिए आमंत्रित करेंगे। सदैव विरोध में बैठने और असहमत होने से खतरनाक आदतें विकसित होती हैं।



सरदार पटेल ने कहा कि अब उनके पास तीन-चौथाई भारत को विकसित करने का एक महान् अवसर है। उनके पास बरबाद करने के लिए अधिक समय नहीं है। देश में खाद्यान्न की कमी है। मजदूरों में अशांति है। मुलतान में अनाज और कपड़े जलाए गए हैं। उन्हें बताया गया है कि अगले चार वर्षों तक हम लोग कपड़ों का आयात करने की आशा नहीं कर सकते और इसलिए 12 गज प्रति व्यक्ति कपड़े की अल्प मात्रा भी हम लोगों को नहीं दे सकते। स्थितियाँ ऐसी हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने काम में पूर्ण ऊर्जा के साथ लग जाना चाहिए। उन्होंने कांग्रेस के विरुद्ध अनेक शिकायतें सुनी हैं। शिकायतों का निराकरण किया जाना चाहिए।



स्वाधीनता आने वाली है। स्वतंत्रता को जीवंत बनाने के लिए कांग्रेस जनों को कठिन परिश्रम करना चाहिए और भारत को मजबूत बनाना चाहिए। वे एक पंचवर्षीय योजना बना सकते हैं और कार्यों की एक सूची तैयार कर सकते हैं। उन्हें कारखाने लगाने चाहिए। उन्हें अवश्य ही एक सेना निर्मित करनी चाहिए और उसे सुदृढ़ व कार्य-कुशल बनाना चाहिए। कांग्रेस की अस्पष्ट आलोचना में लिप्त होने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा और न ही वह करने से कोई लाभ होगा, जैसाकि साम्यवादियों ने किया, जो पहले अंग्रेजों के पक्षधर रहे और बाद में कांग्रेस को बदनाम करने के लिए लीग से मिल गए। कार्यकारिणी समिति ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के समक्ष प्रस्ताव को बे-मन से प्रस्तुत नहीं किया था, बल्कि पूर्ण विवेक के साथ प्रस्तुत किया था।


भारतीय रियासतों के प्रश्न पर सरदार पटेल ने त्रावणकोर का उल्लेख किया और कहा कि वह जानना चाहते हैं कि यह रियासत किस प्रकार एक प्रभुता-संपन्न राज्य बन सकता है। शायद जिस राजनयिक ने स्वाधीनता और प्रभुता-संपन्न की घोषणा की, वह इन शब्दों की जटिलताओं को नहीं समझता था। जब तक त्रावणकोर में कांग्रेस का आधार बना हुआ है तब तक ‘स्वाधीनता और प्रभुता-संपन्न’ का कोई प्रश्न नहीं उठता।

ConversionConversion EmoticonEmoticon

:)
:(
=(
^_^
:D
=D
=)D
|o|
@@,
;)
:-bd
:-d
:p
:ng

भगत सिंह और साथियों की उन्हें फांसी देने की बजाय गोली से उड़ाने के लिए गवर्नर पंजाब को चिट्ठी

"हमें गोली से उड़ाया जाए"  आज़ादी के नायक शहीदे आज़म भगत सिंह के विचार आज भी युवा पीढ़ी को जोश से भर देते है। मात्र 23 साल की उम्र मे...