1 मई मजदूर दिवस : इतिहास और बदलते वक़्त में नए बदलाव की जरूरतें

लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
यकुम मई को भी मज़दूरों ने मज़दूरी की।

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Female workers in the May Day Parade in New York City in 1936 [File: New York Daily News Archive/Getty Images]

हर साल 1 मई को मजदूर दिवस या अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में मनाया जाता जाता है। मई दिवस को योगदान को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है, श्रमिकों ने दुनिया को मजबूत और समृद्ध बनाने के लिए बनाया है।  यह दिन श्रमिकों को उनकी आर्थिक और सामाजिक उपलब्धियों के लिए समर्पित है।

इस  दिन 80 से अधिक देशों में औपचारिक रूप से राष्ट्रीय अवकाश होता है और अनौपचारिक रूप से विश्व के कई अन्य देशों में भी इसे मनाया जाता है। यदि हम श्रमिकों के अधिकारों की इस प्रतीकात्मक तिथि की शुरुआत के इतिहास को देंखें तो पाते है कि इसकी जड़ें किसी कम्युनिस्ट देश में नहीं हुई बल्कि पूंजीवाद का मक्का कहे जाने वाले देश संयुक्त राज्य अमेरिका में हैं।


 उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, अमेरिकी श्रमिक वर्ग 8 घंटे के कार्य दिवस को हासिल करने के लिए निरंतर संघर्षरत था।  काम करने की स्थिति गंभीर थी, तथा असुरक्षित परिस्थितियों में 10 से 16 घंटे काम करना काफी आम बात थी।  कार्य स्थलों पर मृत्यु और चोट तो आम बात थी। सन 1860 की शुरुआत में, कामकाजी लोगों ने वेतन में कटौती के बिना कार्यदिवस को छोटा करने के लिए आंदोलन किया, लेकिन यह 1880 के अंत तक उतना प्रभावी नहीं था।


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 सन 1884 में FOLTU (फेडरेशन ऑफ ऑर्गनाइज्ड ट्रेड्स एंड लेबर यूनियन्स) जो बाद में अमेरिकन फेडरेशन ऑफ लेबर बन गयी, ने एक प्रस्ताव पारित किया कि "1 मई 1886 से 8 घण्टे का कार्य दिवस कानुनी रूप से कार्य दिवस होगा"।  1886 तक आठ घंटे के आंदोलन में लगभग 250,000 कार्यकर्ता शामिल थे। 1 मई 1886 को पूरे अमेरिका में कई श्रमिक संघ हड़ताल पर चले गए, और आठ घंटे के कार्यदिवस की मांग की। 4 मई को शिकागो के हेमार्केट में रक्तपात हुआ, एक क्रांतिकारी द्वारा एक बम फेंका गया जिससे एक दर्जन लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोगों को चोट आई। 


 सन 1887 में, ओरेगन संयुक्त राज्य अमेरिका का पहला राज्य बना जिसने इसे आधिकारिक रूप से इस तिथि को सार्वजनिक अवकाश के रूप मे घोषित किया। 1894 तक यह दिन तीस अमेरिकी राज्यों ने आधिकारिक तौर पर एक आधिकारिक संघीय अवकाश बन गया। 19 वीं सदी के उत्तरार्ध में, समाजवादियों, कम्युनिस्टों और ट्रेड यूनियन ने 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस बनने के लिए चुना। यह तारीख प्रतीकात्मक थी, जो 1886 में अमेरिका में शिकागो में हुई हेमार्केट के प्रसंग की याद में मनायी जाती थी। 



अमेरिका ने 1894 में श्रमिक दिवस को एक संघीय अवकाश के रूप में मान्यता दी, जहां यह हर साल सितंबर के पहले सोमवार को मनाया जाता है। जल्द ही, कनाडा ने भी इस प्रथा को अपना लिया। 1889 में, समाजवादी और श्रमिक दलों द्वारा बनाई गई संस्था द सेकंड इंटरनेशनल ने घोषणा की कि 1 मई को तब से अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में मनाया जाएगा। 


आखिरकार 1916 में, अमेरिका ने वर्षों के विरोध और विद्रोह के बाद आठ घंटे के कार्य दिवस को मान्यता दी। 1917 में रूसी क्रांति के बाद, सोवियत युनियन ने भी इसे मान्यता देकर स्वीकार किया। शीत युद्ध के दौरान पूर्वी ब्लॉक के राष्ट्रों द्वारा भी इस तिथि को मान्यता दी जाने लगी।



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International Labour day


भारत मे 1 मई 1923 को मजदूर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान द्वारा मद्रास (अब चेन्नई) में भारत में पहला मई दिवस समारोह आयोजित किया गया। भारत में पहली बार इस दिन लाल झंडे का इस्तेमाल किया गया था। पार्टी नेता सिंगारवेलु चेट्टियार ने 1923 में दो स्थानों पर मई दिवस मनाने की व्यवस्था की थी। एक बैठक मद्रास उच्च न्यायालय के सामने समुद्र तट पर आयोजित की गई थी, जबकी दूसरी बैठक ट्रिप्लिकेन बीच पर आयोजित की गई थी। 


कॉमरेड सिंगारवेलर ने इस बैठक की अध्यक्षता की। इसमे एक प्रस्ताव पारित किया गया था जिसमें कहा गया था कि सरकार को मई दिवस को अवकाश घोषित करना चाहिए।  पार्टी के अध्यक्ष ने पार्टी के अहिंसक सिद्धांतों को समझाया।  वित्तीय सहायता के लिए अनुरोध किया गया था।  इस बात पर जोर दिया गया कि दुनिया के श्रमिकों को स्वतंत्रता हासिल करने के लिए एकजुट होना होगा।


भारत मे मजदूर दिवस प्रत्येक 1 मई को आयोजित एक सार्वजनिक अवकाश है। श्रमिक दिवस को तमिल में "उझिपालार धिनम" के रूप में जाना जाता है। हिंदी में इसे "कामगर दिवस", कन्नड़ में "कर्मिकरा दिनचरेन", "तेलुगु में कर्मिका दिनोत्सवम", मराठी में "कामगार दिवस",  मलयालम मे "ठोजिलाली दिनम"  और बंगाली में "श्रोमिक डिबोश"के रूप मे जाना जाता है।  चूंकि भारत मे श्रमिक दिवस एक राष्ट्रीय अवकाश नहीं है, इसलिए राज्य सरकार इसे अपने विवेकानुसार सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाती है। विशेष रूप से उत्तर भारतीय राज्यों में कई हिस्सों में यह सार्वजनिक अवकाश नहीं है।


आज का कामगार और मजदूर वर्ग जिस परिस्थिति मे कार्य करता है वह पहले से बेहतर है। पर इसका यह मतलब नही कि यह स्थिति पहले भी ऐसी थी। हम समझना होगा कि इसके लिये पहले के लोगों ने कितना संघर्ष किया है। हैं कि हमारी  हमारे द्वारा आज जिन प्राप्त अधिकारों और सम्मानों का आनन्द उठाया जाता है उसके लिए लोग काफी लड़े हैं, और  अभी भी आगे और लड़ने के लिए बहुत कुछ है।


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 जैसे-जैसे साल बीतते गए और नई सदी के पूर्वार्ध मे मजदूरों के लिये कल्याणकारी योजनाओ और उनके अधिकारों की इस प्रक्रिया ने वैश्विक स्तर पर गति प्राप्त कर ली है। आज यह दिन सामान्य रूप से श्रमिक अधिकारों और श्रमिक अधिकारों के आंदोलन का प्रतीक है।


आज औद्योगिक क्षेत्र में श्रमिकों के लिये संगठित मजदूर संघों ने बेहतर मजदूरी, उचित घंटे और सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों के लिए संघर्ष किया जा रहा है। श्रमिक आंदोलन ने बाल श्रम को रोकने, स्वास्थ्य लाभ देने और घायल या सेवानिवृत्त होने वाले श्रमिकों को सहायता प्रदान करने के प्रयासों का नेतृत्व किया।

 2020 में, कोरोनावायरस महामारी ने आने वाले सालों को मजदूरों के लिये और कठिन बना दिया है। बड़े पैमाने पर कम्पनिया छंटनी कर रही है।  कुछ काम वेतन पर ज्यादा कार्य ले रहिन है। अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों का तो हाल और बुरा है। भारत मे तो इस क्षेत्र के कामगार को अपनी सरकार न तो कोई श्रमिक सुधारों का लाभ मिलता है न ही बेरोजगारी का लाभ तक नहीं मिलता है।


इसलिये सरकारों और संगठनो के लिये ये परीक्षा की घड़ी है कि वे बेरोजगार और कामगार लोगों की पहचान करें। उनके लिये उचित समाजिक सुरक्षा और कार्य समय निश्चित करें। 

  
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO)

 ILO संयुक्त राष्ट्र में स्थित एक एजेंसी है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर श्रमिक मुद्दों से निपटने के लिए स्थापित किया गया है।  इसमें कुल 185 देश सदस्य हैं ।


 यह श्रमिक वर्ग के लोगों के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन करने वाली सभी शिकायतों को सुनता है।  सामाजिक साझेदारों और सरकारी निकाय के बीच स्वतंत्र और खुली बहस  के लिए इसमे एक त्रिपक्षीय शासन संरचना है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन सचिवालय एक अंतर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय के रूप में काम करता है।




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8 comments

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Unknown
admin
May 2, 2020 at 2:35 AM ×

very nice explained, really helpful to write essay

I think need skill education in india , please help to boost skill education.....

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May 2, 2020 at 6:24 AM ×

अच्छी जानकारी देने के लिए आपका आभार

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Unknown
admin
May 2, 2020 at 12:29 PM ×

श्रमिक सुधारों से औपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की स्थिति में सुधार आया, लेकिन सरकारों की प्रवृति औपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के अनौपचारिकरण की दिख रही है, कॉन्ट्रैक्ट लेबर, ठेकेदारी आदि को इसके उपकरण के तौर पर देखा जा सकता है,
श्रमबल की अधिकता के कारण स्थितियां फिर से जटिल और कठिन होती जा रही हैं, खासकर अभी जो विशुद्ध रूप से अनौपचारिक है जैसे कि दिहाड़ी मजदूर आदि..
इन लोगों के वास्तविक स्थिति और उसके कारणों पर भी एक लेख का इंतज़ार रहेगा..
इस अच्छे लेख के लिए आपको बहुत शुभकामनाएं..

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May 2, 2020 at 5:45 PM ×

Thanks alot . Skill India is key to make india empowered

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May 2, 2020 at 5:46 PM ×

आभार भाई। बस ऐसे पढ़ते रहो और टिप्पणी देते रहो

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May 2, 2020 at 5:47 PM ×

जी बिल्कुल। अगला लेख वर्तमान परिदृष्य पर मजदूरों की स्थित् पर होगा।

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May 2, 2020 at 5:47 PM ×

बहुत बहुत आभार

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