शोर यूँ ही न परिंदों ने मचाया होगा,
कोई तो जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा।
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था,
जिस्म जल जायेंगे जब सर पे न साया होगा। "
प्रसिद्ध उर्दू शायर कैफ़ी आज़मी की लिखी ये पंक्तिया मानव जनित पर्यावरण विनाश के परिणामस्वरूप आने वाले वक़्त में घोर पर्यावरणीय त्रासदी की ओर संकेत करती है। इस धरा पर पर्यावरण ही समस्त प्राणियों के जीवन का मूल आधार है। स्वस्थ पर्यावरण के बिना पृथ्वी पर जीवन का संभव रहना संभव ही नहीं हो सकता। ऐसे मे यह जरूरी हो जाता है कि हम स्वयं और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण का संरक्षण औए संवर्धन करे। मानव सभ्यता के विकास के क्रम में साम्राज्यवाद , औद्योगीकरण के बाद पूँजी और तेज वैज्ञानिक तकनीकि विकास के मेल ने पृथ्वी पर मौजूद संसाधनों का अविवेकपूर्ण दोहन शुरू किया। उपभोक्तावादी और भौतिकवादी बनने कि प्रवित्ति ने मानव को इतना अन्धा कर दिया कि उसने अपने भविष्य कि चिंता किये बगैर पर्यावरण और उसके तत्वों का खूब दोहन किया। परिणाम स्वरुप आज पर्यावरणीय और उससे जुडी अनेक समस्याएं सुरसा की भांति आज हमारे सामने मुँह बाये खड़ी है और समस्त प्राणी जाति को अपना ग्रास बनाने को उत्सुक प्रतीत हो रही है।
परंतु ऐसा नही है कि ऐसी समस्यायों का इलाज हमारे पास नहीं है। ये समस्याये मानव जनित है और इनका इलाज स्वयं मानव ही कर सकता है। गांधीजी ने एक बार कहा था कि " प्रकृति की पास हमारी जरूरतें पूरी करने के लिए तो पर्याप्त साधन हैं पर वह लालच को पूरी करने के लिए नाकाफी हैं।" गांधीजी का यह कथन आज न सिर्फ ज्यादा प्रासंगिक है बल्कि हर मामले में सच साबित हो रहा है। पर्यावरण भी अपवाद नहीं है। अपनी बेहतरी की उम्मीदें करना और कुछ हद तक महत्वाकांक्षी होना प्रति व्यक्ति के लिये स्वीकार्य हो सकता है लेकिन भौतिक सुख-सुविधाओं का बंदी बनकर संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करना न केवल मानव जाति के लिये अपितु पर्यावरण और समस्त प्राणियों के लिये अत्यंत खतरनाक भी है। कदाचित हमें यह समझना होगा कि पर्यावरण ,समाज और अर्थव्यवस्था एक दूसरे के परिपूरक ही है। पर्यावरण का विनाश करने वाला कोई भी विकासवादी कदम अंततः हमारे जीवन और पूरी सृष्टि को ही बर्बाद करेगा।
प्राकृतिक पर्यावरण स्वाभाविक रूप से पृथ्वी पर मौजूद सभी जैविक और अजैविक वस्तुओ को संदर्भित करता है। यह आसपास की परिस्थितियों या उन अवस्थाओं को संदर्भित करता है जिसमें प्राणी जाति निवास करते हैं और अपनी सारी जैविक और अजैविक क्रियाये सम्पन्न करतें है। पृथ्वी पर जीवन पृथ्वी के आस पास के पर्यावरण के परिणाम स्वरूप ही फला फूला। पर्यावरण द्वारा प्रदान की जाने वाली अनुकूल स्थितियों के परिणामस्वरूप ही पृथ्वी पर जीवन उभरा। पर्यावरण की अनुकूल स्थितियों के बिना कोई जीव जीवित नहीं रह सकता है। लेकिन दुर्भाग्यवश, मानव सभ्यता की शुरुआत के बाद से, मनुष्य अपनी गतिविधियों के माध्यम से पर्यावरण को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता रहा है और निरंतर इसकी कार्यप्रणाली नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है।
मनुष्य की प्राकृतिक पर्यावरण के साथ भूमिका दो तरफा होती है। अर्थात मनुष्य जहां एक तरफ तो भौतिक पर्यावरण के जैविक घटक का एक महत्वपूर्ण भाग तथा घटक होता है वहीं दुसरी तरफ वह पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण कारक भी होता है। इस प्रकार मनुष्य पर्यावरण तंत्र को अपनी हैशियत से विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता रहता है जैसे कि समाजिक मनुष्य, भौतिक मनुष्य, आर्थिक मनुष्य और प्रौद्योगिक मनुष्य के रूप में। प्रारंभ मे आदिमानव की भौतिक पर्यावरण की कार्यात्मकता मे दो प्रकार की भूमिका होती थी- ग्रहीता ( Receiver) और प्रदाता (Contributor) की। मानव संस्कृति के विकास के प्रथम चरण मे मनुष्य भौतिक पर्यावरण का अन्य कारकों के समान एक कारक मात्र ही था। परंतु जैसे जैसे उसके समाज और संस्कृति के विकास के साथ साथ उसके ज्ञान, कौशल मे बृद्धि और उसका तकनीकि ज्ञान विकसित होता गया पर्यावरण के साथ उसकी भूमिका तथा सम्बंध मे उतरोत्तर परिवर्तन होता गया। प्रारंभ मे जहां मानव "पर्यावरणीय कारक" था वहीं वह धीरे धीरे "पर्यावरण का रूपान्तरणकर्ता" और "पर्यावरण का परिवर्तनकर्ता " से होता हुआ अन्त मे "पर्यावरण विध्वंशकर्ता बन बैठा।
उन्नीशवी शदी के उत्तरार्ध मे औद्योगिक क्रांति का एक नया सवेरा हुआ। जिसने नगरीकरण, जनसंख्या वृद्धि, तीव्र औद्योगिकीकरण को बढावा दिया। इन सब ने वनों को कम करने और जैविक संसाधनो के अन्धाधुंध दोहन में काफी योगदान दिया है। वनोन्मूलन , वैश्विक तापन और प्रदूषण वर्तमान में ऐसे वैश्विक मुद्दे है जो मौजूदा प्रणालियों में पर्यावरण के गुणों को दुष्प्रभावित कर रहे है तथा उसके स्तर को सुधारने के लिए तत्काल ध्यान देने और सुधार करने की जरुरत है। प्रदूषण में वृद्धि के परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन क्षरण , अम्ल बर्षा, पौधों और पशु प्रजातियों को खतरा उत्तपन्न हुआ है साथ ही मौजूदा एक्वाटिक जीवन लिए भी अनेक समस्याएं खड़ी हो चुकी है। प्राकृतिक संसाधनों के अधिक उपयोग के वर्तमान उदाहरण शिमला, दिल्ली और बंगलौर के ताजा पेयजल की समस्याएं हैं।
अपनी बढ़ती जरूरतों और लालच को पूरा करने के लिए मानव ने पृथ्वी पर मौजूद संसाधनों का अधिक से अधिक उपयोग किया है जिससे पर्यावरण से सम्बंधित कई गंभीर समस्याएं सामने आयी है तथा पर्यावरण के स्तर में भी काफी गिरावट आयी है। सभी जीवित जीव अपने पर्यावरण के साथ अनेक प्रकार की अंतःक्रियाये करते है और उनका जीवन इन क्रियाओं से प्रभावित होता हैं। परन्तु जैसे जैसे पर्यावरण के विभिन्न तत्वों में गिरावट और ह्रास हुआ है जैविक प्राणियों और अजैविक घटको के बीच अन्तः क्रिया प्रभावित हुई है। कई सारे जीव प्रजातियां आज विलुप्त हो चुकी है और कई विलुप्ति की कगार पर खडी है जो पर्यावरणीय क्षति का ही परिणाम है। मनुष्य सबसे बुद्धिमान प्राणी होने के कारण हमेशा से पर्यावरण और पर्यावरण पर अपनी गतिविधियों के कारण स्वयं के लाभ और जरूरतों के अनुसार पर्यावरण को प्रभावित करने की कोशिश करता रहा है।
शहरीकरण और औद्योगीकरण की तीव्र वृद्धि ने संसाधनों की शुरुआती कमी और मानव अस्तित्व के लिए संकट पैदा करने के साथ पर्यावरण में और गिरावट को जन्म दिया है। शहरीकरण और औद्योगीकरण ने तेजी से अस्वच्छता, वायु, जल,ध्वनि और भूमि प्रदूषण को बढ़ावा दिया है। गंगा और यमुना नदियों में प्रवाहित होने वाले औद्योगिक अपशिष्ट से जलीय जीवन को बहुत खतरा उतपन्न हुआ है। प्राकृतिक पर्यावरण और वन्यजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अर्थव्यवस्था और विकास में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए हमारे समाज ने पर्यावरणीय संकट को जन्म दिया है जो वैश्विक समुदाय के लिए तत्काल निपटने वाली सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है। मानव गतिविधियों जैसे ऊर्जा आवश्यकताओं, औद्योगिककरण, शहरीकरण का विस्तार, ठोस अपशिष्ट की भारी मात्रा का प्रबंधन करने की चुनौती और विशाल जनसंख्या वृद्धि की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्यावरण पर बहुत अधिक भार डाला गया है जिससे उसका स्रत दिन प्रति दिन बिगड़ता ही जा रहा है।
बंगलुरु जैसे शहर में पानी की समस्या, दिल्ली में स्मोग और वायु प्रदूषण के साथ साथ यमुना के जल प्रदुषण की समस्या, मुंबई में जल श्रोतो के विलोपन के कारण हर साल आने वाली बाढ़ की समस्या , हिमालयी क्षेत्रो में हो रहे विकास और संसाधनों के दोहन के कारन बाढ़,भूस्खलन, आदि की समस्या तथा देश के कई भागो में हर साल पड़ने वाले सूखे की समस्या ने न केवल भारत देश अपितु सारे संसार में जीवन के अस्तित्व के लिए नया खतरा उत्पन्न कर दिया है। अतः एक समृद्ध और स्वस्थ समाज रखने के लिए हमें अपने पर्यावरण की रक्षा करने की आवश्यकता है। वैश्विक शक्तियों की शीर्ष प्राथमिकता सूची में पर्यावरण संरक्षण को रखने के लिए पर्याप्त कदम उठाने और मौजूदा प्रणाली में सुधार करने की तत्काल आवश्यकता है।
पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए कई संस्थाओ द्वारा निरंतर प्रयास जारी है।ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से निपटने और 2020 तक स्वयं घोषित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दुनिया के लगभग सभी देशो ने 2015 का पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र के तहत कार्य करता है जो पर्यावरणीय नीति और सुधारों को लागू करने में निरंतर प्रयास कर रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन, अप्पिको आंदोलन , चिपको आंदोलन आदि ने पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों की विचारधारा में महत्वपूर्ण बदलाव लाने के प्रयास किये है। पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए कई गैर सरकारी संगठन और सरकारी संगठन काम कर रहे हैं।
पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की मदद से भारत सरकार ने भी कई कार्यक्रम शुरू किए हैं जो राष्ट्र मे पर्यावरण और वन्यजीवन के संरक्षण में मदद करते हैं। उनमें से कुछ कार्यक्रम हैं: राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम और ग्रीन इंडिया मिशन, राष्ट्रीय तटीय प्रबंधन कार्यक्रम, हिमालयी अध्ययन पर राष्ट्रीय मिशन, ठोस अपशिष्ट प्रवंधन दिशानिर्देश, और वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रम आदि । केंद्र सरकार भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का कम से कम 33% वन क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिए पिछले कुछ वर्षो से अनेक प्रयास किये है।
13 मार्च 2019 को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा 6वीं वैश्विक पर्यावरण आउटलुक रिपोर्ट जारी की गयी जिसका विषय था "स्वस्थ ग्रह, स्वस्थ लोग"। रिपोर्ट मे कहा गया है कि अस्थिर मानवीय गतीविधियों के कारण समाज की पारिस्थितिकी नींव भी खतरे मे पड़ती जा रही है। हालांकि रिपोर्ट मे कहा गया है कि यदि लोग अपनी जीवन शैली मे बदलाव लायें और धारणीय विकास को बढावा दे तो समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इस रिपोर्ट मे भारत के संदर्भ मे भी कहा गया है कि ' 21वीं शदी के अन्त तक दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा न बढ़े' यह सुनिश्चित करने के अनुरूप भारत यदि नीतिगत पहल करता है तो वह अपनी स्वास्थ देखभाल मे 210 खरब रुपये तक की बचत कर सकता है।
इन्ही सभी पर्यावरणीय समस्याओं द्वारा होने वाले पर्यावरण और पारिस्थितिकी विनाश को ध्यान मे रखकर अमेरिकी वैज्ञानिक सर आल्डो लियोपोल्ड ने सम्पूर्ण मानव जाति से निवेदन किया है कि अब समय आ गया है कि हम अपनी समाजिक चेतना मे पृथ्वी को भी शामिल करें। हज़ारों वर्षों पूर्व हमारे महर्षियों ने भी " माता भूमि: पुत्रो अहम् पृथिव्या:" की संस्कृति को स्थापित किया था। जरुरत है की हम फिर से अपने पूर्वजों के इसी संदेश को आत्मसात करें और वैज्ञानिक विकास तथा प्रकृति के साथ तालमेल एवं सामन्जस्य बिठाकर अपने पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र एवं पृथ्वी को बचाते हुये विशाल जनमानस का भरण पोषण करें और- यावद् वृक्षाः तावद् वृष्टिः
यावद् वृष्टिः तावत् सृष्टिः।
-------------------- रक्षन्तु पर्यावरणम् जैसे सूत्र वाक्यों का पर्यावरण, जीवों और मानव कल्याण हेतु उद्घोष करें।
स्रोत- समाचार पत्र और इंटरनेट
नोट- इस लेख के कुछ अंश एक प्रतियोगी परीक्षा मैगजीन मे एक बर्ष पहले प्रकाशित हो चुका है। सम्प्रति इसमें नये तथ्य एक पैरा जोड़े गये हैं।
कोई तो जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा।
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था,
जिस्म जल जायेंगे जब सर पे न साया होगा। "
प्रसिद्ध उर्दू शायर कैफ़ी आज़मी की लिखी ये पंक्तिया मानव जनित पर्यावरण विनाश के परिणामस्वरूप आने वाले वक़्त में घोर पर्यावरणीय त्रासदी की ओर संकेत करती है। इस धरा पर पर्यावरण ही समस्त प्राणियों के जीवन का मूल आधार है। स्वस्थ पर्यावरण के बिना पृथ्वी पर जीवन का संभव रहना संभव ही नहीं हो सकता। ऐसे मे यह जरूरी हो जाता है कि हम स्वयं और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण का संरक्षण औए संवर्धन करे। मानव सभ्यता के विकास के क्रम में साम्राज्यवाद , औद्योगीकरण के बाद पूँजी और तेज वैज्ञानिक तकनीकि विकास के मेल ने पृथ्वी पर मौजूद संसाधनों का अविवेकपूर्ण दोहन शुरू किया। उपभोक्तावादी और भौतिकवादी बनने कि प्रवित्ति ने मानव को इतना अन्धा कर दिया कि उसने अपने भविष्य कि चिंता किये बगैर पर्यावरण और उसके तत्वों का खूब दोहन किया। परिणाम स्वरुप आज पर्यावरणीय और उससे जुडी अनेक समस्याएं सुरसा की भांति आज हमारे सामने मुँह बाये खड़ी है और समस्त प्राणी जाति को अपना ग्रास बनाने को उत्सुक प्रतीत हो रही है।
परंतु ऐसा नही है कि ऐसी समस्यायों का इलाज हमारे पास नहीं है। ये समस्याये मानव जनित है और इनका इलाज स्वयं मानव ही कर सकता है। गांधीजी ने एक बार कहा था कि " प्रकृति की पास हमारी जरूरतें पूरी करने के लिए तो पर्याप्त साधन हैं पर वह लालच को पूरी करने के लिए नाकाफी हैं।" गांधीजी का यह कथन आज न सिर्फ ज्यादा प्रासंगिक है बल्कि हर मामले में सच साबित हो रहा है। पर्यावरण भी अपवाद नहीं है। अपनी बेहतरी की उम्मीदें करना और कुछ हद तक महत्वाकांक्षी होना प्रति व्यक्ति के लिये स्वीकार्य हो सकता है लेकिन भौतिक सुख-सुविधाओं का बंदी बनकर संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करना न केवल मानव जाति के लिये अपितु पर्यावरण और समस्त प्राणियों के लिये अत्यंत खतरनाक भी है। कदाचित हमें यह समझना होगा कि पर्यावरण ,समाज और अर्थव्यवस्था एक दूसरे के परिपूरक ही है। पर्यावरण का विनाश करने वाला कोई भी विकासवादी कदम अंततः हमारे जीवन और पूरी सृष्टि को ही बर्बाद करेगा।
प्राकृतिक पर्यावरण स्वाभाविक रूप से पृथ्वी पर मौजूद सभी जैविक और अजैविक वस्तुओ को संदर्भित करता है। यह आसपास की परिस्थितियों या उन अवस्थाओं को संदर्भित करता है जिसमें प्राणी जाति निवास करते हैं और अपनी सारी जैविक और अजैविक क्रियाये सम्पन्न करतें है। पृथ्वी पर जीवन पृथ्वी के आस पास के पर्यावरण के परिणाम स्वरूप ही फला फूला। पर्यावरण द्वारा प्रदान की जाने वाली अनुकूल स्थितियों के परिणामस्वरूप ही पृथ्वी पर जीवन उभरा। पर्यावरण की अनुकूल स्थितियों के बिना कोई जीव जीवित नहीं रह सकता है। लेकिन दुर्भाग्यवश, मानव सभ्यता की शुरुआत के बाद से, मनुष्य अपनी गतिविधियों के माध्यम से पर्यावरण को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता रहा है और निरंतर इसकी कार्यप्रणाली नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है।
मनुष्य की प्राकृतिक पर्यावरण के साथ भूमिका दो तरफा होती है। अर्थात मनुष्य जहां एक तरफ तो भौतिक पर्यावरण के जैविक घटक का एक महत्वपूर्ण भाग तथा घटक होता है वहीं दुसरी तरफ वह पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण कारक भी होता है। इस प्रकार मनुष्य पर्यावरण तंत्र को अपनी हैशियत से विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता रहता है जैसे कि समाजिक मनुष्य, भौतिक मनुष्य, आर्थिक मनुष्य और प्रौद्योगिक मनुष्य के रूप में। प्रारंभ मे आदिमानव की भौतिक पर्यावरण की कार्यात्मकता मे दो प्रकार की भूमिका होती थी- ग्रहीता ( Receiver) और प्रदाता (Contributor) की। मानव संस्कृति के विकास के प्रथम चरण मे मनुष्य भौतिक पर्यावरण का अन्य कारकों के समान एक कारक मात्र ही था। परंतु जैसे जैसे उसके समाज और संस्कृति के विकास के साथ साथ उसके ज्ञान, कौशल मे बृद्धि और उसका तकनीकि ज्ञान विकसित होता गया पर्यावरण के साथ उसकी भूमिका तथा सम्बंध मे उतरोत्तर परिवर्तन होता गया। प्रारंभ मे जहां मानव "पर्यावरणीय कारक" था वहीं वह धीरे धीरे "पर्यावरण का रूपान्तरणकर्ता" और "पर्यावरण का परिवर्तनकर्ता " से होता हुआ अन्त मे "पर्यावरण विध्वंशकर्ता बन बैठा।
उन्नीशवी शदी के उत्तरार्ध मे औद्योगिक क्रांति का एक नया सवेरा हुआ। जिसने नगरीकरण, जनसंख्या वृद्धि, तीव्र औद्योगिकीकरण को बढावा दिया। इन सब ने वनों को कम करने और जैविक संसाधनो के अन्धाधुंध दोहन में काफी योगदान दिया है। वनोन्मूलन , वैश्विक तापन और प्रदूषण वर्तमान में ऐसे वैश्विक मुद्दे है जो मौजूदा प्रणालियों में पर्यावरण के गुणों को दुष्प्रभावित कर रहे है तथा उसके स्तर को सुधारने के लिए तत्काल ध्यान देने और सुधार करने की जरुरत है। प्रदूषण में वृद्धि के परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन क्षरण , अम्ल बर्षा, पौधों और पशु प्रजातियों को खतरा उत्तपन्न हुआ है साथ ही मौजूदा एक्वाटिक जीवन लिए भी अनेक समस्याएं खड़ी हो चुकी है। प्राकृतिक संसाधनों के अधिक उपयोग के वर्तमान उदाहरण शिमला, दिल्ली और बंगलौर के ताजा पेयजल की समस्याएं हैं।
अपनी बढ़ती जरूरतों और लालच को पूरा करने के लिए मानव ने पृथ्वी पर मौजूद संसाधनों का अधिक से अधिक उपयोग किया है जिससे पर्यावरण से सम्बंधित कई गंभीर समस्याएं सामने आयी है तथा पर्यावरण के स्तर में भी काफी गिरावट आयी है। सभी जीवित जीव अपने पर्यावरण के साथ अनेक प्रकार की अंतःक्रियाये करते है और उनका जीवन इन क्रियाओं से प्रभावित होता हैं। परन्तु जैसे जैसे पर्यावरण के विभिन्न तत्वों में गिरावट और ह्रास हुआ है जैविक प्राणियों और अजैविक घटको के बीच अन्तः क्रिया प्रभावित हुई है। कई सारे जीव प्रजातियां आज विलुप्त हो चुकी है और कई विलुप्ति की कगार पर खडी है जो पर्यावरणीय क्षति का ही परिणाम है। मनुष्य सबसे बुद्धिमान प्राणी होने के कारण हमेशा से पर्यावरण और पर्यावरण पर अपनी गतिविधियों के कारण स्वयं के लाभ और जरूरतों के अनुसार पर्यावरण को प्रभावित करने की कोशिश करता रहा है।
शहरीकरण और औद्योगीकरण की तीव्र वृद्धि ने संसाधनों की शुरुआती कमी और मानव अस्तित्व के लिए संकट पैदा करने के साथ पर्यावरण में और गिरावट को जन्म दिया है। शहरीकरण और औद्योगीकरण ने तेजी से अस्वच्छता, वायु, जल,ध्वनि और भूमि प्रदूषण को बढ़ावा दिया है। गंगा और यमुना नदियों में प्रवाहित होने वाले औद्योगिक अपशिष्ट से जलीय जीवन को बहुत खतरा उतपन्न हुआ है। प्राकृतिक पर्यावरण और वन्यजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अर्थव्यवस्था और विकास में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए हमारे समाज ने पर्यावरणीय संकट को जन्म दिया है जो वैश्विक समुदाय के लिए तत्काल निपटने वाली सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है। मानव गतिविधियों जैसे ऊर्जा आवश्यकताओं, औद्योगिककरण, शहरीकरण का विस्तार, ठोस अपशिष्ट की भारी मात्रा का प्रबंधन करने की चुनौती और विशाल जनसंख्या वृद्धि की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्यावरण पर बहुत अधिक भार डाला गया है जिससे उसका स्रत दिन प्रति दिन बिगड़ता ही जा रहा है।
बंगलुरु जैसे शहर में पानी की समस्या, दिल्ली में स्मोग और वायु प्रदूषण के साथ साथ यमुना के जल प्रदुषण की समस्या, मुंबई में जल श्रोतो के विलोपन के कारण हर साल आने वाली बाढ़ की समस्या , हिमालयी क्षेत्रो में हो रहे विकास और संसाधनों के दोहन के कारन बाढ़,भूस्खलन, आदि की समस्या तथा देश के कई भागो में हर साल पड़ने वाले सूखे की समस्या ने न केवल भारत देश अपितु सारे संसार में जीवन के अस्तित्व के लिए नया खतरा उत्पन्न कर दिया है। अतः एक समृद्ध और स्वस्थ समाज रखने के लिए हमें अपने पर्यावरण की रक्षा करने की आवश्यकता है। वैश्विक शक्तियों की शीर्ष प्राथमिकता सूची में पर्यावरण संरक्षण को रखने के लिए पर्याप्त कदम उठाने और मौजूदा प्रणाली में सुधार करने की तत्काल आवश्यकता है।
पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए कई संस्थाओ द्वारा निरंतर प्रयास जारी है।ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से निपटने और 2020 तक स्वयं घोषित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दुनिया के लगभग सभी देशो ने 2015 का पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र के तहत कार्य करता है जो पर्यावरणीय नीति और सुधारों को लागू करने में निरंतर प्रयास कर रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन, अप्पिको आंदोलन , चिपको आंदोलन आदि ने पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों की विचारधारा में महत्वपूर्ण बदलाव लाने के प्रयास किये है। पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए कई गैर सरकारी संगठन और सरकारी संगठन काम कर रहे हैं।
पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की मदद से भारत सरकार ने भी कई कार्यक्रम शुरू किए हैं जो राष्ट्र मे पर्यावरण और वन्यजीवन के संरक्षण में मदद करते हैं। उनमें से कुछ कार्यक्रम हैं: राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम और ग्रीन इंडिया मिशन, राष्ट्रीय तटीय प्रबंधन कार्यक्रम, हिमालयी अध्ययन पर राष्ट्रीय मिशन, ठोस अपशिष्ट प्रवंधन दिशानिर्देश, और वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रम आदि । केंद्र सरकार भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का कम से कम 33% वन क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिए पिछले कुछ वर्षो से अनेक प्रयास किये है।
13 मार्च 2019 को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा 6वीं वैश्विक पर्यावरण आउटलुक रिपोर्ट जारी की गयी जिसका विषय था "स्वस्थ ग्रह, स्वस्थ लोग"। रिपोर्ट मे कहा गया है कि अस्थिर मानवीय गतीविधियों के कारण समाज की पारिस्थितिकी नींव भी खतरे मे पड़ती जा रही है। हालांकि रिपोर्ट मे कहा गया है कि यदि लोग अपनी जीवन शैली मे बदलाव लायें और धारणीय विकास को बढावा दे तो समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इस रिपोर्ट मे भारत के संदर्भ मे भी कहा गया है कि ' 21वीं शदी के अन्त तक दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा न बढ़े' यह सुनिश्चित करने के अनुरूप भारत यदि नीतिगत पहल करता है तो वह अपनी स्वास्थ देखभाल मे 210 खरब रुपये तक की बचत कर सकता है।
इन्ही सभी पर्यावरणीय समस्याओं द्वारा होने वाले पर्यावरण और पारिस्थितिकी विनाश को ध्यान मे रखकर अमेरिकी वैज्ञानिक सर आल्डो लियोपोल्ड ने सम्पूर्ण मानव जाति से निवेदन किया है कि अब समय आ गया है कि हम अपनी समाजिक चेतना मे पृथ्वी को भी शामिल करें। हज़ारों वर्षों पूर्व हमारे महर्षियों ने भी " माता भूमि: पुत्रो अहम् पृथिव्या:" की संस्कृति को स्थापित किया था। जरुरत है की हम फिर से अपने पूर्वजों के इसी संदेश को आत्मसात करें और वैज्ञानिक विकास तथा प्रकृति के साथ तालमेल एवं सामन्जस्य बिठाकर अपने पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र एवं पृथ्वी को बचाते हुये विशाल जनमानस का भरण पोषण करें और- यावद् वृक्षाः तावद् वृष्टिः
यावद् वृष्टिः तावत् सृष्टिः।
-------------------- रक्षन्तु पर्यावरणम् जैसे सूत्र वाक्यों का पर्यावरण, जीवों और मानव कल्याण हेतु उद्घोष करें।
स्रोत- समाचार पत्र और इंटरनेट
नोट- इस लेख के कुछ अंश एक प्रतियोगी परीक्षा मैगजीन मे एक बर्ष पहले प्रकाशित हो चुका है। सम्प्रति इसमें नये तथ्य एक पैरा जोड़े गये हैं।
Excellent post
ReplyDeleteबहुत उम्दा लेख
ReplyDeleteशुक्रिया भैया।।
DeleteVery informative article. Thanks
ReplyDeleteThanks alot for your appreciation.
Deleteबढ़िया लेख है,काफी महत्वपूर्ण है।
ReplyDeleteसामयिक, शिक्षाप्रद, सम्पूर्ण लेख... सारे पहलू बखूबी समाहित हैं, साधुवाद, इस कार्य के लिए..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार।
Deleteआपके गोप्ता जी की तरफ से
Deleteबहुत शानदार और ज्ञानवर्धक लेख। तथ्यों और भावो का उम्दा समन्वय। ऐसे ही लिखत रहिए।
ReplyDeleteशुक्रिया भाई
DeleteKeep it chote bhai bahut accha likha hai aaj ki jarurat hai sab ko ise samjhana padega
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार भैया जी। कोई सुझाव होगा देते रहियेगा।
DeleteDhanywad ki aapne ish vishay ke bare mai socha aur likha.
ReplyDeleteYe hamara durbhagya ha ki ham apne pryavanan ke bare Mai na sochte huye chhad matra ki bhsutik shuko ke lalach se ghire huye ha.
Agar ham khud ke liye itne hi jad ho gaye ha to kam se kam hame apne aane wali peedhi ke liye apni prakriti ki raksha krna hi Hoga..
Ish lockdown ne hame to bandh rakha ha lekin aaj barso bad prakriti azad ha. Aaj wo khuli hawa mai sans le rahi ha. Asha karti hu ki log ish samay se kuch sikhe aur paryavanan ki rakhsha kare.
बहुत खूब। बिल्कुल सही। बहुत बहुत आभार।
DeleteVery well written
ReplyDeleteThanks bhai. Keep reading my blog and give ur valuable suggestions.
DeleteAbhi bhi vakt hai,paryavaran ko bachane k liye sb milkar kadam badhaye,logo ko jagruk kre,prakritik sansadhano ka galat estemal krne se rokne k liye prerit kre.
ReplyDeleteThis earth is dying because mankind is destroying it, but if the earth dies, you also die....
Jee bilkul sahi likha hai aapne. We have to do some serious efforts.
DeletePraiseful
ReplyDeleteThanks alot.
DeleteNice sir again write
ReplyDeleteNice sir again
ReplyDeleteThanks Sandeep ji
Deleteबहुत शानदार भाई
ReplyDeleteआभार भाई।
Deleteशानदार एवं ज्ञानवर्धक लेख भैया������
ReplyDeleteअलोक त्रिपाठी।
आभार भाई। अपने बहुमूल्य सुझाव भी देते रहना आप।
Deleteबेहद शुक्रिया। कृपया ऐसे ही अपने बहुमूल्य सुझाव देते रहें। और इस लेख को ज्यादा से ज्यादा छात्रों में सेयर करें।
ReplyDeleteExcellent composition with great knowledge
ReplyDeleteThanks alot
DeleteGood efforts.. Keep doing
ReplyDeleteThanks for your lovely comment.
Delete